सोमवार, 16 सितंबर 2013

शांति पाठ के माध्यम से पर्यावरण - संरक्षण

शांति पाठ के माध्यम से पर्यावरण - संरक्षण 

तीन आदि एवं मूल तत्व हैं _ ईश्वर , जीव और सृष्टि या प्रकृति । जीव और सृष्टि परस्पर एक दूसरे के पूरक और अन्योन्याश्रित हैं । जीव अर्थात विशेष रूप से मानव प्रकृति को प्रदूषित कर रहा है । प्रकृति का वायु -मंडल एक रूप से पर्यावरण के रूप में आता है । जो प्रकृति और मानव के लिए हितकर है , वह देव है । तथा जो मानव व प्रकृति के अहितकर है , वह ही असुर है । मानव के हित में कार्य करने से दिव्य गुणों का समावेश हो जाता है और अहितकारी कार्यों से आसुरी प्रवृत्तियों का प्रादुर्भाव होता है। पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए हमारे वैदिक साहित्य में ' शांति-पाठ ' की प्रस्तुति की गयी है । ' शांति-पाठ ' के माध्यम से सम्पूर्ण सृष्टि ही नहीं अपितु पूरे ब्रह्मांड को प्रदूषण से रहित करने पर बल दिया गया है । शांति-पाठ के अंतर्गत सर्व प्रथम द्यू- लोक , अन्तरिक्ष-लोक और पृथ्वी-लोक को शांति के माध्यम से प्रदूषण रहित करने का प्रयास किया गया है । पृत्वी के गुरुत्वाकर्षण की सीमा तक आकाश में अन्तरिक्ष लोक की स्थिति को माना गया है , जबकि इसे ऊपर की स्थिति को जहाँ सूर्य , चन्द्रमा तथा नक्षत्र -ग्रह आदि हैं उसे द्यू लोक स्वीकार किया गया है । अर्थात जो सूर्य आदि से द्युति-युक्त है , वह ही द्यू लोक है ।

सर्व प्रथम हम पृथ्वी को ही लेते हैं । पृथ्वी का पर्यावरण प्रदूषित होने से कैसे बच सकता है , इसके विषय में आगे शांति-पाठ में विचार किया गया है। जल , वनस्पति और औषधियों की शांति की प्रार्थना ही हमें पर्यावरण का संदेश प्रदान करती है । जल ही जीवन है , जल से ही सभी प्रकार के कार्य सम्पन्न होते हैं । समय पर वर्षा वनस्पति और औषधियों के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है । इसके लिए हमारे ऋषि -मुनियों ने यज्ञ -हवन आदि की विधि को अपनाया था । यज्ञ पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त रखने में अत्यधिक सहायक होता है । जल भी सर्वथा प्रदूषण से मुक्त हो इसका हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए । कल-कारखानों का अशुद्ध जल का प्रवेश पृथ्वी में न हो पाए । साथ ही विविध वनस्पति और औषधी से युक्त वृक्षों को लगातार लगते रहना चाहिए , ताकि पर्यावरण स्वस्थ और शुद्ध होता चला जाये ।

आज सम्पूर्ण विश्व पर्यवरण -प्रदूषण के भय से त्रस्त है । अब तो पर्यावरण को शुद्ध और प्रदूषण- मुक्त रखने की चर्चा अहं बात होती जा रही है । प्राकृतिक सम्पदाएँ पर्यावरण की सजग प्रहरी हैं। भारतीय परम्परा में वृक्षों का काटने का पूर्ण रूप से निषेध है । वृक्ष पूर्ण रूप से पृथ्वी के संरक्षक हैं । बाढ़ से रक्षा , समय पर वर्षा एवं जलवायु की सुरक्षा में वृक्षों का महत्त्व अत्यधिक है । मानव का कर्त्तव्य है कि वह इसके माध्यम से प्रकृति में संतुलन बनाने का प्रयास करे ।%%%%%%%%

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