रविवार, 22 सितंबर 2013

सोम की तुलना अग्नि एवं सूर्य की लाल चमक से

सोम-रस को बलदायक , स्फूर्ति -वर्धक , आयु तथा ज्ञान बढ़ाने वाला 
सोम-रस को बलदायक , स्फूर्ति -वर्धक , आयु तथा ज्ञान बढ़ाने वाला बताया गया है। सोम-पान से अँधा देखने लगता है, छूत की बीमारियाँ और अनेक असाध्य रोग दूर हो जाते हैं। सोम-रस के विषय में कहा जाता है कि यह मून्ज्वान पर्वत पर प्राप्त होता है। यह मुजताग पामीर का पूर्वी पहाड़ है। सोम धीरे-धीरे आकाश की ओर बढ़ता एवं फिर चन्द्रमा की भांति फूल जाता है। इसमें से सुनहली कांति निकलती है। सोमरस का प्रयोग अकेले या दूध-धी-जौ तथा मधु मिलाकर किया जाता था
सोम को 15 वर्ष के शोध- कार्य के उपरांत अमेरिका के वयोवृद्ध कवकशास्त्री(मैकोलोजिस्ट) श्री रिचर्ड गार्डन वासन ने एक कवक (कुकुमुत्ता) की जाति 'अमानिता मस्कारिया ' बतलाया है, जिसके बारे में आज तक सोचा भी नहीं गया था और जिसकी तालमेल ऋग्वेद में वर्णित सोम तथा उसकी आलंकारिक परिभाषाओं में बिलकुल सटीक बैठती है। ' अमानिता मस्कारिया ' जिसे ' फ्लाई एग्रिक ' भी कहते हैं , यह कवक कुल का सबसे बड़ा तथा सुंदर कवक है। यह एशिया के उत्तरी समशीतोष्ण वनीय भाग तथा उत्तरी साइबेरिया में एक प्रकार के भोज (बर्च) और देवदारु ( पाइन) के वनों में पाया जाता है। इसका छत्र 6 से 7 इंच घेर वाला , सुर्ख लाल तथा पीले अथवा सफेद धब्बे से युक्त होता है। इसकी नाल लगभग ८ से 10 इंच तक लम्बी होती है। यदि इस कवक के छोटे-छोटे टुकड़े पानी में भिगोकर रख दिए जाएँ तो मखियाँ इसकी ओर आकर्षित हो जाती हैं और इसको खाते ही मर जाती हैं। इसलिए इसको फ्लाई एगरिक कहा जाता है। यह पहले एक फूली गेंद के समान दिखलायी देता है, जो बिकुल सफेद रंग का होता है। जैसे-जैसे यह बढ़ता जाता है इसमें से सफेद आवरण हटता जाता है और फूले हुवे छत्र की लाल त्वचा दीखने लगती है।
सोम से शारीरिक शक्ति बढ़ती है और कभी-कभी रंगीन दिवास्वप्न भी आने लगता हैं। ऋग्वेद के अनुसार सोम में पत्र , पुष्प, फल, बीज तथा जड़ें नहीं होती थीं , केवल अमसु अर्थात तना, मूर्धन एवं शिरस (छत्र) का प्रयोग हुवा है, जो केवल कवक में होते हैं। सोम की तुलना अग्नि एवं सूर्य की लाल चमक से की गयी है। इसे गाय के फूले हुवे थन के समान माना गया है। सोम बादल के समान भेड़ की सफेद त्वचा के आवरण में लिपटा हुवा दर्शाया गया है। अर्थात सोम पहले सफेद फिर आवरण हटाकर लाल होता है। सोमरस की फ्लाई एगरिक के निकले हुवे रस से समता स्थापित की गयी है। सोम को अज तथा इकपाद अर्थात अजन्मा तथा एक पैर वाला, एक नेत्र वाला तथा आकाश का स्तम्भ स्वीकार किया गया है। सोम के लिए कहा गया है कि वह दिन में भूरा लाल तथा रात्रि में रजत के समान श्वेत होता है। ऋग्वेद में अनेक स्थानों पर इसके लिए ' नाभि ' शब्द का प्रयोग किया गया है, जो आज भी फ्लाई एगरिक के लिए फ़्रांस,रूस, तुर्की से लेकर कोरिया और कम्बोडिया तक में प्रयोग किया जाता है।

भारत से नीचे उतरने में सोम मिलना बंद हो गया। उसको भुलाना असम्भव था , अत: अन्य एफ्रिद्रा, पेरिप्लोका, सरकोस्तेमा आदि प्रयोग में लाये गये ; लेकिन असली सोम का गुण कहीं नहीं मिल पाया। ऋग्वेद (१०-85- 03) में कहा गया है कि हर कोई समझता है कि वह सोम-पान करता है, क्योंकि उसे औषधिक वनस्पति से निकाला जाता है, परन्तु जिस सोम को ब्राह्मण जानते हैं , उसे कोई नहीं जानता।&&&&&&&&&&&&&&&

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