शनिवार, 21 सितंबर 2013

मनु के नियम _ समाज -व्यवस्था

मनु के नियम _ समाज -व्यवस्था 


मनु ने कहा ,"मैं मानवों का राजा मनु कहता हूँ, सब सुनें। मेरे हाथ में ब्रह्म-सभा ने दंड दिया है और मैं इसकी सहायता से ऋत का प्रचार करूंगा। मैं कुछ नियम बनाता हूँ। सबसे पहले हमें बालकों पर ध्यान देना है। नित्य-प्रति के संग्रामों से उन पर ध्यान ही नहीं दिया गया, वे प्राचीन धर्म से बिलकुल अछूते रह गये हैं। मैं नियम बनाता हूँ कि विवाह के पहले प्रत्येक बालक-बालिका को ऋषि के आश्रम में रहकर शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। उन्हें हर प्रकार के से मानव कुल के योग्य बनना होगा। शिक्षा-ग्रहण करके ही वे विवाह कर गृहस्थी बनेंगे और अपने कर्त्तव्य पूरे करेंगे। "

मनु ने आगे कहा--- " गृहस्थ-जीवन में भी तुम सबने देखा होगा कि हमारे तीन प्रमुख कार्य हैं। ऋषि -कार्य, जो ऋषि प्राचीन श्रुति-स्मृति को संजोये हुवे हैं। राजन्य जो विश अर्थात प्रजा की हर प्रकार से रक्षा करते हैं तथा साधारण विश जो खेती करके सबका पेट पालते हैं। मैं इन कार्यों के लिए समस्त मानवों को तीन वर्णों में बांटता हूँ। प्रत्येक मानव जो कार्य करना चाहे उसके लिए विशेष कुशलता ग्रहण करेगा , दक्ष बनेगा और उसे भलीभांति पूरा करेगा। तभी मानव-कुल जग-विख्यात बनेगा और उसकी प्रगति तीव्र होगी। पहला कार्य जो करेंगे वे ब्राह्मण कहलायेंगे। वे ब्रह्म के मुख होंगे। वे धर्म का पठन-पाठन करेंगे तथा आचार-व्यवहार को स्थिर रखेंगे। धर्म-संशय-निर्णय के लिए मैं वेद, धर्मशास्त्र और तर्कशास्त्र जानने वाले तीन सदाचारी ऋषियों की एक परिषद बनाता हूँ, जिनका निर्णय धर्म के समस्त मामलों पर अंतिम होगा। दूसरा कार्य क्षत्र का हैजो क्षत्रिय करेंगे। वे हर प्रकार से अपने को इस योग्य बली बनायेंगे कि राजा के अधीन रहकर राज्य की रक्षा कर सकें। तीसरे विशवासी वैश्य कहलायेंगे , जो हर प्रकार का आर्थिक जीवन सम्भालेंगे। कृषि, व्यापार सब उनके हाथ में होगा। ये तीनों एक ही अंग के तीन भाग होंगे। ब्राह्मण मनुष्य के शील की रक्षा करेगाक्षत्रिय देह की और वैश्य प्राण की रक्षा करेगा।"

ब्राह्मण को जीवन-यापन के लिए भूमि और गाय राजा देगा। क्षत्रियों को वृत्ति मिलेगी। वैश्यों का सम्पत्ति और धन पर अधिकार रहेगा, लेकिन वह शासन चलाने के लिए राजा को अपनी आय का छठा भाग अर्पित करेगा। आगे मनु ने कहा इन कार्यों को अपनाने में किसी मानव पर बल-प्रयोग नहीं किया जायेगा। जिसकी इच्छा जिस काम को अपनाने की हो वह उसे करे। मैं जनता हूँ कि मेरे कुछ पुत्र वैश्य और ब्राह्मण वृत्ति अपनाना चाहते हैं। वे इसके लिए पूर्ण स्वतंत्र हैं, तीनों कार्य समाज के लिए समान महत्त्वपूर्ण हैं। यदि एक मस्तिष्क हैतो दूसरा हाथ और तीसरा रीढ़ की हड्डी

मनु ने दंड उठाकर गरजते हुवे कहा-- " मैं राजा मनु दंड का शासन आरम्भ करता हूँ। मैं क्षत्र को आज्ञा देता हूँ कि वे सौ स्वस्थ दासों को पकड़ लायें। जैसे प्राचीन काल में शत्रु को मारकर पितरों को प्रसन्न किया जाता था , उसी प्रकार आज हम अपने शासन की शुभकामना के लिए नरमेध देते हैं , जिससे शत्रु में भय उत्पन्न हो। "
" क्यों नहीं ? " सब उन सौ दासों पर टूट पड़े और उनकी बोटी-बोटी करके यज्ञ-कुंड में डाल दी गयी। एकबारगी दासों में चीत्कार उठा , जो शीघ्र खो गया। प्राचीन काल में दस इस लिए मारे जाते थे , क्योंकि उनका भरण-पोषण भारी पड़ता था, लेकिन मनु इसे आतंक फ़ैलाने के लिए किया था। ( यह पुरुष-मेध बहुत वर्णित है। प्राचीन काल में ही नहीं , उदाहरण के लिए जनमेजय का नाग-यज्ञ , यह बाबर के काल तक भी प्रचलित था, जिसने नर-मुंडों की मीनार चिनवायी थी। )

मनु का दूसरा आदेश था , " इनमें से बीस सबल दासों के पाश काट दो। ये अपने भाई-बांधवों तक समाचार ले जाने तक के लिए स्वतंत्र हैं। शेष दासों को तुम बाँट लो। भोजन के बदले ये तुम्हारा हर प्रकार का काम करेंगे। यह हमारा चौथा वर्ण हुवा। एक बात और , आज से निरर्थक हत्याकांड बिलकुल बंद। "******

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