गुरुवार, 19 सितंबर 2013

आचरण से सही आचार्य बना जा सकता है

किसी बर्तन का एक भाग आग पर रखा जाए तो सारा बर्तन ही गर्म हो जाता 


समस्त विश्व की सेवा करके सबको सुखी बनाने की भावना रखी जा सकती है , पर सेवा का क्षेत्र सारे संसार को , समस्त मानव समाज को नहीं बनाया जा सकता , क्योंकि वे हमारी सेवा-सीमा से बाहर होते हैं। विश्व-व्यापी समस्त दुखों का कारण है _ अज्ञान और पाप, स्वार्थ और मोह , तृष्णा और वासना इन महा-व्याधियों को हटाये बिना दुखों को दूर करने के समस्त प्रयत्न ऐसे हैं , जैसे रक्त-विकार की फुंसियों पर मरहम लगाना इसमें व्याधि का समाधान नहीं होता। एक भले गुण,कर्म , स्वभाव का व्यक्ति भी अपने प्रभाव से कुछ-न-कुछ व्यक्तियों को अवश्य ही अपने समान बना लेता है और सुधार सकता है। यदि उनका मनोबल और चरित्र उच्चकोटि का है , तब तो उसका सूक्ष्म प्रभाव इतना प्रचंड भी हो सकता है कि असंख्य व्यक्तियों को कुछ से कुछ बना दे, भगवान बुद्ध, महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों ने अपने आत्मबल से कितने लोगों को क्या से क्या बना दिया ? पूर्वकाल में भी सारे संसार में यही प्रक्रिया काम करती रही है। चरित्रवान और आत्मबल सम्पन्न लोगों ने अकेले ही विश्व को , मानव-जाति को ऊपर उठाने का इतना अधिक कार्य किया है जितना कि आत्मबल से रहित हजारों उपदेशक गला फाड़-फाड़ कर जीवन- भर चलाते रहने से भी नही कर सकते।



संसार के कष्टों को मिटाने के लिए समाज का नैतिक और मानसिक स्तर ऊंचा उठाना आवश्यक है। इस प्रकार की सेवा तभी हो सकती है जब अपनी निज की स्थिति भी वह सब कर सकने के लिए शक्तिशाली एवं उपयुक्त हो। किसी बर्तन का एक भाग आग पर रखा जाए तो सारा बर्तन ही गर्म हो जाता है और उसके भीतर रखी हुयी चीजें पकने लगती हैं। आग केवल बर्तन की तली को ही छूती थी , पर सारे बर्तन में फ़ैल गयी। सुधार-कार्य , सेवा-कार्य किसी भी व्यक्ति से प्रारम्भ किया जाए , उसका परिणाम निश्चित रूप से पूरे समाज पर होता है। यदि हम अपनी सेवा कर लें और अपने को सुधार लें तो सारी मनुष्य जाति की सेवा उससे हो सकती है। किसी को सन्मार्ग पर चलने के लिए की शिक्षा देकर ही उसके कष्टों और चिंताओं का समाधान हो सकता है। यह कार्य उपदेशों से नहीं , अपना आदर्श उपस्थित करके ही किया जाना सम्भव है। वस्तुत: आचरण से सही आचार्य बना जा सकता है।

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