संकल्प को जीवन की उत्कृष्टता का मन्त्र समझना चाहिए
जब व्यक्ति किसी कार्य में प्राण, मन और समग्र शक्ति के साथ संलग्न होता है तो वह सफलता के अत्यधिक ही समीप पहुंच जाता है। आवश्यकता को अविष्कार की जननी कहा गया है। जब किसी बात की तीव्र इच्छा होती है , तो उसे पूर्ण करने के लिए साधनों की तलाश प्रारम्भ होती है। संकल्प की यदि मन में गहरी और सुदृढ़ स्थापना हो जाए तो लक्ष्य तक पहुंचना बहुत सरल हो जाता है।आगे बढ़ने से संकोच नहीं करना चाहिए , पर यह तभी सम्भव है , जब हमारा संकल्प , हमारा उद्देश्य अटूट साहस श्रद्धा एवं शक्ति से संयुक्त हो। अधूरे मन से किए गये कार्य में कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं होती। संकल्प का दूसरा रूप है आत्मविश्वास। वह जागृत हो जाए तो अपना विकास तेजी से किया जा सकता है। संकल्प को जीवन की उत्कृष्टता का मन्त्र समझना चाहिए। उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुणों के विकास के लिए होना चाहिए।
जब व्यक्ति किसी कार्य में प्राण, मन और समग्र शक्ति के साथ संलग्न होता है तो वह सफलता के अत्यधिक ही समीप पहुंच जाता है। आवश्यकता को अविष्कार की जननी कहा गया है। जब किसी बात की तीव्र इच्छा होती है , तो उसे पूर्ण करने के लिए साधनों की तलाश प्रारम्भ होती है। संकल्प की यदि मन में गहरी और सुदृढ़ स्थापना हो जाए तो लक्ष्य तक पहुंचना बहुत सरल हो जाता है।आगे बढ़ने से संकोच नहीं करना चाहिए , पर यह तभी सम्भव है , जब हमारा संकल्प , हमारा उद्देश्य अटूट साहस श्रद्धा एवं शक्ति से संयुक्त हो। अधूरे मन से किए गये कार्य में कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं होती। संकल्प का दूसरा रूप है आत्मविश्वास। वह जागृत हो जाए तो अपना विकास तेजी से किया जा सकता है। संकल्प को जीवन की उत्कृष्टता का मन्त्र समझना चाहिए। उसका प्रयोग मनुष्य जीवन के गुणों के विकास के लिए होना चाहिए।
दृढ़ संकल्प से स्वल्प साधनों में भी मनुष्य अधिकतम विकास कर सकता है और आनन्द का जीवन जी सकता है। दीपक कब कहता है कि वह दस किलो मिट्टी का बना होता और उसमें दस किलो तेल होता तो सबको प्रकाश का देता। वह अपने सीमित साधनों से ही प्रकाश देने लगता है। उन्नति की आकांक्षा रखना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। संकल्प द्वारा प्रत्येक मनुष्य सफलता प्राप्त कर सकता है। एक व्यक्ति था जो अपनी पत्नी द्वारा महामूर्ख कहा गया , बुरी तरह तिरस्कृत और लांछित हुवा। बात उसके मन में बैठ गयी। उसे अत्यधिक बुरा लगा। उसने पत्नी को छोड़ा और बड़ी आयु में विद्या अध्ययन में लग गया। सुदीर्घ काल के अभ्यास और अटल संकल्प के बल से वह संस्कृत का महाकवि कालिदास बना। समग्र भारत उसकी प्रतिभा और विद्या से चमत्कृत हो उठा। उसके मन में काव्य-शक्ति का विशाल भंडार स्थापित था।
जहाँ कार्य-कारण का अटूट सम्बन्ध है , वहां प्रारब्ध और भाग्य या तकदीर मानना मूर्खता के अतिरिक्त और क्या है ? किसे विचार करने का मार्ग मालूम नहीं है ? कौन प्रत्येक कार्य के पीछे काम करने वाले कारण को नहीं जानता है ? जो अपने कल्पित भूत-प्रेतों और जीवन के तूफानों से सदा विचलित रहता है , वही अपने कल्पित भूत-प्रेतों और बुरे ग्रहों का दास बना रहता है। राजा वसुसेन का ज्योतिष पर बड़ा विश्वास था वे हर काम मुहूर्त से करते और हर समय अपने साथ एक ज्योतिषी सदा रखते। उन दिनों दोनों कहीं यात्रा पर जा रहे थे। रास्ते में एक किसान बीज बोने हल-बैल लेकर जा रहा था। ज्योतिषी ने कहा , " मूर्ख! आज इस दिशा में ग्रह-दशा ठीक नहीं है। लौट जा नहीं तो हानि होगी। " किसान ने कहा--" मैं तो रोज ही खेत पर जाता हूँ। बुरी ग्रह -दशा मेरा क्या कर लेगी ?" इस पर ज्योतिषी ने हस्तरेखा दिखाने को कहा तो किसान बोला, " हाथ वह पसारे जिसे कुछ मांगना हो। मैं तो आप जैसों को देकर खाता हूँ।" ज्योतिषी और राजा उसका मुंह देखते रह गये।
संकल्प की दृढ़ता , धैर्य और साहस से व्यक्ति जीतता है। जिन्होंने असफलता से कभी हार नहीं मानी , निराशा को पास नहीं आने दिया ; ऐसे व्यक्तियों के संकल्प अवश्य पूरे होते हैं। मनुष्य की वास्तविक शक्ति उसकी इच्छाशक्ति ही है, क्योंकि यही जीवन के चिह्न , कर्म की विधायिका तथा प्रेरिका होती है। जहाँ इच्छा नहीं , वहां कर्म नहीं और जहाँ इच्छा है , वहां कर्मों का होना अनिवार्य है। इच्छा की प्रेरणा से ही मनुष्य कर्मों में प्रवृत्त होता है। यदि उसमे इच्छा की स्फुरणा नहीं , उसकी प्रेरणा न हो तो मनुष्य भी जड़ बन कर पड़ा रहे। आदिकाल से मनुष्य इच्छाशक्ति अर्थात संकल्प से ही विकास एवं उन्नति करता आया है। यह सब संकल्प-शक्ति का ही चमत्कार है।%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%
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