शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

वृक्ष आदि में जन्म लेना भोग योनि

मनुष्य शरीर प्राप्त करने में हजारों - लाखों शरीर बदलने पड़ते हैं



कुछ मनुष्य इतने दुष्ट होते हैं कि वे जीवनभर अपनी सारी इन्द्रियों का दुरूपयोग ही दुरूपयोग करते हैं, उन्हें जड़ योनियों में जाना पड़ता है। वृक्ष आदि में जन्म लेना भोग योनि है। उनमें जीव तो रहता है, पर क्रियाशील चेतना का अधिकांश भाग जब्त कर लिया जाता है। इन भोग योनियों में जन्म प्राप्त होना प्रभु की ही कृपा का चिह्न है , क्योंकि बिना जड़ योनि मिले उन दुष्ट संस्कारों को भुला सकना उस अज्ञानी के लिए कठिन है , जब तक कि वह पुरानी बुरी आदतों को भूल नहीं जाता। अब उसकी उन्नति का क्रम यहीं से प्रारम्भ होता है। वृक्ष के बाद कीड़े-मकोड़े फिर पशु-पक्षियों की योनियों को धीरे-धीरे पार करता है , क्रमश: अधिक ज्ञान वाली योनि को अपनाता जाता है। हिन्दू धर्मशास्त्र इन योनियों की संख्या चौरासी लाख मानता है। भौतिक विज्ञानी उनकी संख्या इससे भी अधिक बताते हैं। जो हो यह निश्चित है कि दुष्ट कर्म करने वाले , अपनी इन्द्रियों को बार-बार अनुचित रीति से प्रयोग करने वाले जड़ योनियों में जन्म लेते हैं और फिर वहां से उन्नति करते-करते मनुष्य शरीर प्राप्त करने में हजारों - लाखों शरीर बदलने पड़ते हैं किसी योनि में उन्नति -क्रम रुक गया तो वह योनि एक से भी अधिक बार ग्रहण करनी पडती है , जैसे फेल हो जाने पर विद्यार्थी को दूसरे वर्ष भी उसी कक्षा में पढ़ना पड़ता है।

जड़ योनियों में जाने का दंड प्राय: उन्हीं जीवों को दिया जाता है , जो अत्यंत दुष्ट होते हैं और अपनी क्रियाशीलता को पतन की ओर ले जाते हैं। साधारण पुण्य-पाप करते रहने वालों को दूसरी बार भी मनुष्य जन्म मिलता है , क्योंकि लाखों योनियों में भ्रमण करके उसने जो इतना ज्ञान संपादन किया है , वह इतना उल्लेखनीय नहीं है कि जरा-सी बात पर करोड़ों वर्षों तक भटकने के लिए उसी चक्कर में फिर पटक दिया जाए। मनुष्यों को बार-बार यह अवसर दिया जाता है कि वे अपने अंतिम उद्देश्य परमपद को पाएं।
%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें