ओंकार का अंक गणित
ओंकार ईश्वरीय सत्ता का प्रतीक है। भारतीय दर्शन में प्रतीकों , चिह्नों , आकृतियों और अक्षरों के मध्य ब्रह्माण्ड और विश्व के अनेक रहस्यों को संजोया गया है। ओंकार भी इसी रूप में एक प्रतीक है। ओंकार देखने में जितना छोटा और नगण्य प्रतीत होता है , उतनी ही वह बड़ी शक्ति का प्रतीक है। यह ' प्रणव ' से उत्पन्न दैवी अनुदान है। इसका मनोवैज्ञानिक लाभ यह सम्पूर्ण है। और मन विकारग्रस्त होने से बचा रहता है।
ॐ 'अव ' धातु से बनता है। अव धातु के १९ अर्थ हैं। इसमें १ और ९ के अंक उपस्थित हैं। गणित को जानने वाले इससे पूरी तरह परिचित हैं की एक का अंक अपने में पूर्ण स्वतंत्र है , अत एव इसकी सत्ता का सद्भाव सभी अंकों में विद्यमान है। ९ का अंक स्वतंत्र तो नही , किन्तु पूर्ण अवश्य है। पूर्ण वह है , जो अपने में न्यूनता न आने दे। इसी वजह से संख्या १ से प्रारम्भ होकर ९ पर समाप्त हो जाती है। शेष सब इन्हीं अंकों का विस्तार मात्र ही है।
एक का अंक सूक्ष्म है , शेष सब स्थूल हैं ; जिस प्रकार सूक्ष्म का समावेश स्थूल में हो , उसी प्रकार स्थूल का प्रवेश सूक्ष्म में नहीं हो सकता। ९ की संख्या पूर्ण है , इसी वजह से इसके आगे की संख्या का विधान नहीं है। ९ अंक की व्यवस्था अन्यों से कुछ भिन्न है। जब एक का अंक इसमें संयुक्त होने के लिए समीप आता है , तो वह वृद्धि को न प्राप्त होकर बिदु के रूप में बदल जाता है और अपने गौरव को नहीं घटाता। यह सदा पूर्णता का पक्षधर है। इसी वजह से इस बिंदु ने गणितविद्या को पूर्ण बना दिया।
इस बिंदु और ९ की समानता पर विचार करें , तो ज्ञात होगा की इसमें स्वरूप भेद के अतिरिक्त और कुछ भी अंतर नहीं। यह इस बात से प्रकट होता है की यदि किसी अंक के आगे से बिंदु को हटाते हैं , तो निश्चय ही वहां से प्रकारांतर से ९ को ही हटाते हैं। दस की संख्या में से यदि बिंदु को दूर कर दें तो एक शेष रहता है। इस पक्रिया द्वारा एक रूप से प्रछन्न रूप से ९ को ही कम करते हैं। किसी भी अंक के आगे बिदु हटाने या लाने से ९ ही जाते अथवा आते हैं।
इस प्रकार ९ का अंक सर्वत्र अपनी पूर्णता का परिचय देता है। ९ अंक को गुना करने से प्राप्त अंक का योग ९ ही बना रहता है . यह इसकी पूर्णता को स्पष्ट करता है। १९ अर्थों वाली इस संख्या में १ और ९ के अंक ओंकार की इस पूर्णताबोधक तत्व दर्शन को ही अभिव्यक्त करते हैं। और यही ओंकार का गणित है। &&&&&&&&
इस प्रकार ९ का अंक सर्वत्र अपनी पूर्णता का परिचय देता है। ९ अंक को गुना करने से प्राप्त अंक का योग ९ ही बना रहता है . यह इसकी पूर्णता को स्पष्ट करता है। १९ अर्थों वाली इस संख्या में १ और ९ के अंक ओंकार की इस पूर्णताबोधक तत्व दर्शन को ही अभिव्यक्त करते हैं। और यही ओंकार का गणित है। &&&&&&&&
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