शनिवार, 21 सितंबर 2013

दूसरी एवं तीसरी धार्मिक क्रांति

दूसरी एवं तीसरी धार्मिक क्रांति 


दूसरी धार्मिक क्रांति __ धर्म की संकल्पना का विकास चलता रहा। पठन-पाठन , मनन और ध्यान से ज्ञान की अतिशय वृद्धि होती रही। पहली धार्मिक क्रांति के 1600 उपरांत दूसरी धार्मिक क्रांति हुयी , यह उपनिषद-युग था एवं 800 ईसापूर्व का समय था। स्थान-स्थान पर ऋषियों ने आश्रम खोले और धर्म पर पुराने अनुभवों के आधार पर नये प्रयोग किये गये। ये सत्य के निकट जा पहुंचे। इसमें उनके गुरु थे चार राजर्षि __ केकय देश उत्तर-पूर्वी पंजाब के अश्वपति , पंचाल बरेली के आस-पास के प्रवाहण जैबली , काशी के अजातशत्रु और मिथिला के विदेह जनक अनेक ऋषि हुवे , उनमें विद्युत् से चमकते चार थे_ उद्दालक आरुणि, अष्टविक्र, याज्ञवल्क्य और श्वेतकेतु धर्म का ज्ञान उच्च शिखर पर जा पहुंचा। इन सबमें याज्ञवल्क्य सूर्य के समान देदीप्यमान थे। उसने उद्दालक आरुणि से दार्शनिक शास्त्र , अपने मामा वैशम्पायन से वैदिक-शास्त्र , पिप्पलाद से और हिरण्याभ कौशल्य से योग-शास्त्र सीखा। मामा वैशम्पायन से राम का समकालीन लंकाधीश रावण के लिखे कृष्ण यजुर्वेद पर उनका विरोध हो गया। उसमें कमियों को ठीक करके याज्ञवल्क्य ने शुक्ल यजुर्वेद लिखा। जो प्रतिष्ठापित यजुर्वेद है। कृष्ण यजुर्वेद आज भी दक्षिण में माना जाता है और वह ऋग्वेद के समान विशाल ग्रन्थ है। इस शुक्ल यजुर्वेद का याज्ञवल्क्य ने शतपथ ब्राह्मण लिखा। उसके अंतिम अठारह श्लोकों के भाग के रूप में ईशावस्योप्निषद लिखा। साथ ही इन्होंने बृहदारण्यक उपनिषद भी लिखा। कोरवों के राजा हस्तिनापुर के जनमेजय तृतीय से शुक्ल यजुर्वेद को मान्यता प्राप्त होनर पर इसने जनमेजय का नाग-यज्ञ करवाया। यह तैतरीय संहिता और ऋग्वेद से संयुक्त था।

तीसरी धार्मिक क्रांति __ उपनिषदों का युग शिक्षित नागरिकों के लिए था, साधारण जनता के लिए नहीं। इसलिए भारत में तीसरी धार्मिक क्रांति हुयी, जिसमें उपनिषदों की खोज को आगे बढ़ा कर धर्म के द्वारा भिक्षु और उपासक बना कर जन-जन में फैला दिए गये। भारत में फिर आचार्यों की बाढ़ आई, इनमें प्रमुख महावीर और बुद्ध थे। इन्होंने जैन या बौद्ध धर्म नहीं चलाया अपितु याज्ञवल्क्य के प्रयोग को आगे ही बढ़ाया। महावीर ने अपने हर सूक्त के अंत में कहा है _ मैं यह धर्म या सद्धर्म का प्रचार कर रहा हूँ। बुद्ध ने अपने हर पद के अंत में कहा है _ ' एक धम्मो सनन्तनो ' कि यह सनातन धर्म ही है। समय ने जो धर्म को राख से ढ़क दिया था उसे स्वच्छ करके इन्होंने फिर ज्योति जलाई। अशोक के समय तक बुद्ध की शिक्षा धर्म के रूप में ही जानी जाती थी। जब ये धर्म बाहर फैले तो जैन और बौद्ध धर्म नाम से रूढ़ हो गये। बुद्ध कृष्ण की आपेक्षिता के सच्चे अनुयायी थे। उनहोंने पाया कि गृहस्थ का धर्म संन्यासी का धर्म नहीं हो सकता , इसलिए उन्होंने मध्यम मार्ग अपनाया। सितार के तार इतने ढ़ीले न छोड़ो कि स्वर न निकले और न इतना तानो कि तार टूट जाये। महावीर और बुद्ध के अतिरिक्त कुछ अन्य प्रसिद्ध आचार्य भी हुवे हैं।&&&&&&&&&&&&&&






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