सोमवार, 23 सितंबर 2013

याचना नहीं अपितु प्रार्थना ही करनी चाहिए।

याचना में व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं की याचना जबकि प्रार्थना में भक्त आंतरिक गुणों की ओर ध्यान 



याचना में व्यक्ति सांसारिक वस्तुओं की याचना करता है, जबकि प्रार्थना में भक्त आंतरिक गुणों की ओर ध्यान देता है। इसलिए याचना नहीं अपितु प्रार्थना ही करनी चाहिए। प्रार्थना से व्यक्ति के सत गुणों का विकास होता है। प्रार्थना से व्यक्ति का मन एवं चित्त निर्मल होता जाता है। वैदिक प्रार्थना वेद के सिद्धांतों पर आधारित होती है। इससे मन में शांति प्राप्त होती है। वैदिक प्रार्थना उदाहरण रूप में प्रस्तुत है।

हे ! सर्वाधार , सर्वान्तर्यामिन परमेश्वर ! आप अनंत काल से अपने उपकारों की वर्षा किए जाते हो। प्राणिमात्र की सम्पूर्ण कामनाओं को आप ही प्रतिक्षण पूर्ण करते हो। हमारे लिए जो कुछ शुभ और हितकर है , उसे आप बिना मांगे स्वयं हमारी झोली में डालते जाते हो। आपके आँचल में अविरल शांति तथा आनंद का वास है। आपकी चरण-शरण की शीतल छाया में परम तृप्ति है, शाश्वत सुख की उपलब्द्धि है तह सभी अभिलाषित पदार्थों की प्राप्ति है।



हे जगत्पिता परमेश्वर ! हममें सच्ची श्रद्धा और विश्वास हो। हम आपकी अमृतमयी गोद में बैठने के अधकारी बनें। अंत:करण को मलिन बनाने वाली स्वार्थ तथा संकीर्णता की सब क्षुद्र भावनाओं से हम ऊंचे उठे। काम, क्रोध , लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष इत्यादि कुटिल भावनाओं तथा सब मलिन वासनाओं को हम दूर करें। अपने ह्रदय की आसुरी प्रवृत्तियों के साथ युद्ध में विजय पाने के लिए हे प्रभो ! हम आपको ही पुकारते हैं और आपका ही आँचल पकड़ते हैं।


हे परम पावन प्रभो ! हममें सात्विक प्रवृत्तियां जागृत हों। क्षमा, सरलता, स्थिरता, निर्भयता, अहंकार- शून्यता इत्यादि शुभ भावनाएं हमारी सम्पत्ति हों। हमारा शरीर स्वस्थ तथा परिपुष्ट हो, मन सूक्ष्म तथा उन्नत हो , आत्मा पवित्र तथा सुन्दर हो, आपके संस्पर्श से हमारी सारी शक्तियां विकसित हों । ह्रदय दया तथा सहानुभति से भरा हो । हमारी वाणी में मिठास हो तथा दृष्टि में प्यार हो। विद्या और ज्ञान से हम परिपूर्ण हों। हमारा व्यक्त्तित्व महान तथा विशाल हो।

हे प्रभो ! अपने आशीर्वादों की वर्षा करो। दीनातिदीनों के मध्य में विचरने वाले आपके चरण - अरविन्दों में हमारा जीवन अर्पित हो। इसे अपनी सेवा में लेकर कृतार्थ करें। ॐ शांति: ! ॐ शांति: !! ॐ शांति: !!!*******

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