गुरुवार, 26 सितंबर 2013

बढ़ते चलो किस्मत साथ देगी

बढ़ते चलो किस्मत साथ देगी 




 ईश्वर ने मनुष्य को इतना कमजोर नहीं बनाया है कि उसे दीन-हीन होकर जीना पड़े। मार्ग उन्हीं का अवरुद्ध होता है जो अपने ऊपर भरोसा नहीं करते। कितने ही व्यक्ति आत्म-हीनता की ग्रंथि से ग्रसित होकर अच्छे- खासे साधन होते हुवे भी अपने-आपको गया-गुजरा मानते हैं। इस प्रकार के लोगों को ऐसा अभागा मानना चाहिए, जिन्होंने स्वयं ही दारिद्र्य को निमंत्रित कर अपने ऊपर आमंत्रित कर लिया है।




 बहादुरी इसी में है कि यदि हमारे पास अल्प साधन ही हैं, तो भी हम अपनी लगन, हिम्मत और परिश्रम के आधार पर ऐसे काम कर दिखाएँ , जो लोगों को आश्चर्य-चकित कर दे।
अदूरदर्शिता के परिणाम सर्वविदित हैं।




 तात्कालिक आकर्षण आमंत्रित तो करते हैं पर अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा लेकर उनसे बचा जा सकता है। रेगिस्तान में एक काफिला जा रहा था। शाम होते-होते एक स्थान पर कुछ वृक्ष दीखे , वहीं पड़ाव करने का निश्चय किया गया। स्थान पर पहुंचने पर लोगों देखा कि एक पेड़ पर बहुत से अच्छे पके फल लगे हैं। सभी दौड़ पड़े खाने की लालसा में। तभी सरदार ने रोक दिया , उसने कहा, " कार्य करने से पूर्व विवेक का उपयोग करना चाहिए। यदि ये फल उपयोगी होते तो पहले वाले काफिले इन्हें समाप्त कर देते। पहले फलों की परीक्षा कर लें। " परिक्षण किया गया तो पता चला कि फल विषैले थे।



हेलन केलर अंधीबहरीगूंगी थी , वह तीनों ही व्यथाओं से पीड़ित थी। पर अपनी सूझ-बूझ और संकल्प बल के सहारे शिक्षा प्राप्त करने का कोई न कोई तरीका निकालती रही। तथा अपनी बुद्धि-कौशल के सहारे सफल होती रही।

 उसने अंग्रेजी में एम..पास किया , साथ ही लैटिन , फ्रेंच , जर्मनी आदि का भी अध्ययन किया। घरेलू काम भी भली-भांति कर लेती थी। उसने कुशलता का उपयोग अपने लिए ही नहीं किया , अपितु अपंगों की शिक्षा तथा स्वालम्बन के लिए सारे संसार में भ्रमण करके करोड़ों रुपया एकत्रित किया। उनकी विद्या से प्रभवित होकर कितने ही विश्वविद्यालयों ने डाक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। लोग हेलन केलर को संसार का आठवां आश्चर्य कहते थे।

स्मरण रहे कि बुराईयाँ संघर्ष के बिना जाती नहीं और संघर्ष के लिए साहस अपनाना अनिवार्य होता है। सभी जानते हैं कि बहादुरों की अपेक्षा कायरों पर आततायियों के आक्रमण हजार गुने अधिक होते हैं। कठिनाइयों से पार जाने और प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के लिए साहस ही एक मात्र ऐसा साथी है, जिसको साथ लेकर हम अकेले भी दुर्गम दीखने वाले पथ पर चल पड़ने और लक्ष्य तक पहुंचने में बहादुरी के साथ ही समर्थ हो सकते हैं..>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>


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