सोमवार, 30 सितंबर 2013

स्वयं अपनी इच्छा से ही बदल सकता है

 स्वयं अपनी इच्छा से ही बदल सकता है 





अपने आप को देखें ;वास्तव में यह कार्य सबसे कठिन है। सबसे सरल कार्य है दूसरों को सलाह देना तथा दूसरों को सुधारने का प्रयास करना। कठिन काम स्वयं को देखना और बदलना है। आज बदलाव की प्रक्रिया का प्रारम्भ स्वयं से होना चाहिए। इसका आधार है --आत्म - निरीक्षण।



 तुम्हारी गर्दन पर तलवार का प्रहार करने वाला शत्रु उतना अहित नहीं करता , जितना अहित तुम्हारी अपनी आइसको "आत्म दीपो भव" भी कहा जा सकता है , अर्थात स्वयं अपना दीप या प्रकाश बन रास्ते को देखना एवं पहचाना है। मेरी दुर्बलताओं को दूसरे ही देखते हैं , मैं स्वयं उन्हें क्यों नहीं देख पाता? मैं स्वयं अपनी भूलों का परिष्कार क्यों नहीं कर पा रहा हूँ। यह भाव ही स्वयं को बदलने का सबसे सरल उपाय हो सकता है।
त्मा करती है। बदलने का निर्णय व्यक्ति स्वयं ले तो सफलता मिल सकती है। पर दूसरों के कहने से कुछ होने वाला नहीं है।यह एक सामान्य मानवीय दुर्बलता है कि कोई भी किसी की टीका-टिप्पणी या मार्ग- दर्शन को स्वीकार नहीं करता।


 सुझाव या मार्ग- दर्शन देने वाला स्वयं अप्रिय बन जाता है। अत: व्यक्ति स्वयं अपने आप को सुधार सकता है। व्यक्ति स्वयं अपनी इच्छा से ही बदल सकता है , कसी दूसरे की इच्छा से नहीं। किसी को तारना, उबारना या सुधारना इन्सान की बात ही क्या, भगवान के हाथ में भी नहीं है।





 इसके लिए अपेक्षित है कि चेतना का बहाव पर- दर्शन से हटकर स्व- दर्शन की ओर हो। आत्म- दर्शन कर एवं आत्मकेंद्रित बनकर ही स्व-दर्शन के द्वार खोले जा सकते हैं। स्व-दर्शन की एक लम्बी यात्रा है ; स्वयं के विकारों , वृत्तियों ओर प्रवृत्तियों की रोक से ही यह सम्भव हो सकता है।*******************




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें