सोमवार, 23 सितंबर 2013

कठिनाइयाँ जीवन की कसौटी

कठिनाइयाँ जीवन की एक सहज स्वाभविक स्थिति 


कठिनाइयाँ जीवन की एक सहज स्वाभविक स्थिति हैजिन्हें स्वीकार करके मनुष्य अपने लिए उपयोगी बना सकता है। जिन कठिनाइयों में कई व्यक्ति रोते हैं, मानसिक क्लेश अनुभव करते हैं , उन्हीं कठिनाइयों में दूसरे व्यक्ति नवीन प्रेरणा , नव-उत्साह पाकर सफलता का अनुभव करते हैं। सबल मन वाला व्यक्ति बड़ी कठिनाइयों को भी स्वीकार करके आगे बढ़ता है तो निर्बल मन वाला सामान्य-सी कठिनाई में भी निश्चेष्ट हो जाता है। परीक्षा कई कसौटी पर प्रतिष्ठित हुवे बिना कोई भी वस्तु उत्कृष्टता नहीं प्राप्त कर सकती, न उसका कोई मूल्य ही होता है। सोना भीषण गर्मी में तप कर ही शुद्ध और उपयोगी होता है। कड़ी धूप में तप कर ही खेतों में खड़ी फसल पकती है। आग की भयंकर गोद में पिघल कर ही लोहा सांचे में ढलने के लिए उपयुक्त बनता है। जन-जन में पूजी जाने वाली मूर्ति पर पैनी छैनी की असंख्य चोटें पडती हैं। परीक्षा की अग्नि में तप कर ही वस्तु शक्तिशाली , सौन्दर्य-युक्त और उपयोगी बनती है। मनुष्य भी विपत्तियों में तपकर ही उत्कृष्ट और महत्त्वपूर्ण बनता है। जीवन को अधिक उत्कृष्ट और महत्त्वपूर्ण बनाने के लिए मनुष्य को उतनी ही अधिक कठिनाइयों और परेशानियों से गुजरना पड़ता है; वस्तुत: कठिनाइयाँ , दुःख और परेशानियाँ जीवन की कसौटी हैं, जिनमें मनुष्य के व्यक्तित्व का रूप निखरता है।

जो मनुष्य विपत्तियों से जूझता है, उसके साथ खेलता है , वह स्वयं तो उससे मिलने वाले लाभ प्राप्त करता ही है, किन्तु दूसरों के लिए प्रेरणा और आदर्श बन जाता है। एक कायर सैनिक को रण से भागता देखकर कई सैनिक भाग निकलते हैं। इसके विपरीत एक योद्धा जो अपने कर्त्तव्य को सामने रखकर विपत्तियों से भी लड़ता रहता है, उसे देखकर अन्य सैनिक भी प्रेरणा और उत्साह प्राप्त कर लड़ते रहते हैं। उनमें वीरता के भाव जागृत हो जाते हैं। स्मरण रखिये , विपत्तियाँ केवल कमजोर , कायर और निठल्ले को ही डराती , धमकाती और पराजित करती हैं और उन लोगों के वश में रहती हैं जो उनसे जूझने के लिए कमर कस कर तैयार रहते हैं। इस प्रकार के दृढ़ संकल्प वाले कर्मठ व्यक्ति कभी अपने जीवन में निराश नहीं होते। अपितु वे दूसरे निराश और एवं हताश व्यक्तियों के लिए प्रेरणा के केंद्र बन जाते हैं। राम, कृष्ण, महावीर,बुद्ध,ईसा, मोहम्मद, स्वामी दयानन्द , महात्मा गाँधी आदि महापुरुषों के जीवन संकटों और विपत्तियों से भरे हुवे थे, पर वे संकटों की तनिक भी परवाह न करते हुवे अपने कर्त्तव्य मार्ग पर अविरल और अबाध गति से अग्रसर होते रहे। फलत: वे अपने उद्देश्य में सफल हुवे और आज संसार उन्हें ईश्वरीय अवतार मानकर पूजता है। विपत्तियों एवं कठिनाइयों से जूझने में ही हमारा पुरुषार्थ है। धैर्य की परीक्षा सुख की अपेक्षा दुःख में ही अधिक होती है। विपत्तियों से गुजरे बिना कोई भी अपने लक्ष्य को नहीं पा सकता। विद्वानों का कहना है कि जिस उद्देश्य का मार्ग कठिनाइयों के बीच होकर नहीं जाता , उसकी उच्चता में संदेह करना चाहिए। ऐसे अनेक महापुरुष हुवे हैं , जो असुविधापूर्ण परिस्थितियों में रहे , उन्हें कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ा, साथ ही उन्हें किसी प्रकार की असुविधा नहीं थी, उन्होंने भी कठिन कामों को हाथ में लेकर कठिनाइयों को इच्छापूर्वक आमंत्रित किया।

ब्रिटेन के प्रधान-मंत्री चर्चिल बचपन में तुतलाते थे। उन्होंने वाणी पर अधिकार करने का फैसला किया और घोर परिश्रम से वे कुशल वक्ता बने। कठिनाई से उपार्जित सुख-साधनों में जितना संतोष होता है , उतना सहज उपलब्ध साधनों से नहीं होता है। मनुष्य की पूर्णता के लिए दुःख-विपत्तियों का होना अत्यंत आवश्यक है। दुखों की आग में जले बिना मनुष्य के मानसिक मल दूर नहीं होते और मनुष्य अपने आंतरिक रूप में नहीं आ पाता। जहाँ दुःख की अनुभति नहीं , वहां ईश्वर की अनुभूति असम्भव है। यही कारण है कि भक्तों ने ईश्वर के समीप रहने के साधन के रूप में दुःख को सहर्ष स्वीकार किया है। स्वामी विवेकानन्द ने लिखा है -- " व्यस्त मनुष्य को आंसू बहाने के लिए कोई समय नहीं रहता। कठिनाई एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत व्यक्ति सुदृढ़ , प्रबुद्ध एवं अनुभवी बनता है।" कठिनाइयाँ जीवन की कसौटी हैं , जिनमें हमारे आदर्श , नैतिकता एवं शक्तियों का मूल्यांकन होता है।


मनुष्य जब तक जीवित है , उसे परिवर्तनशील उतार -चढ़ाव और बनने-बिगड़ने वाली अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना ही होगा। विपत्तियाँ संसार का स्वाभाविक धर्म है। वे आती हैं और सदा आती रहेंगी। उनसे न तो भयभीत होइए और न भागने की कोशिश करिये , अपितु अपने पूरे आत्मबल साहस और शूरता से उनका सामना कीजिए और जीवन में बड़े से बड़ा लाभ उठायिए। विपत्तियों से हमें डरना नहीं , अपितु उनका मुकाबला करना चाहिए।%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%

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