सोमवार, 30 सितंबर 2013

अध्यात्म विज्ञानं का नियामक

बुद्धि अस्थिर है और प्रज्ञा स्थिर __अध्यात्म द्वारा नियंत्रित विज्ञानं ही विश्व - चेतना को उच्च- शिखर 




अध्यात्म विज्ञानं का नियामक है। मानव जाती की अखंडता आज कल्पना की वस्तु नहीं , प्रत्यक्ष का अनुभूति का विषय बन गयी है। क्योंकि आधुनिक वैगानिक प्रयोगों ने विश्व- मानव को जितना निकट लाकर उपस्थित कर दिया है , मानव- हृदयों की उतनी ही दूरी अधिक बढ़ गयी है।



 जो आत्म प्रज्ञा - शून्य हैं , वे अवसाद को प्राप्त करते हैं। क्योंकि बुद्धि अस्थिर है और प्रज्ञा स्थिर है। एक ही बुद्धि विविध रंगों से रंजित होने पर अनेक रूप ग्रहण करती है। बुद्धि निर्णायक नहीं होती , वह भटकाने वाली होती है। 


इसके प्रतिकूल प्रज्ञा तटस्थ एवं निर्णायक होती है। यदि आत्म प्रज्ञा जागृत नहीं है,तो बुद्धि का असीमित विस्तार भी व्यर्थ है। यदि प्रज्ञा जागृत हो जाती है ,तो भले ही ज्ञान -विज्ञानं की अन्यान्य विधाओं से वह अनजान होते हुवे भी वह अपने गंतव्य को प्राप्त कर सकता है।



 अज्ञान के हाथों में कोई भी ज्ञान सृजनात्मक नहीं सकता और ज्ञान के हाथों में अज्ञान भी सृजनात्मक बन जाता है। इसलिए विज्ञानं का यदि कोई सक्षम नियामक तत्त्व है तो वह अध्यात्म ही है। अध्यात्म द्वारा नियंत्रित विज्ञानं ही विश्व - चेतना को उच्च- शिखर पर पहुंचा सकता है ।****************



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