सोमवार, 16 सितंबर 2013

परमात्मा तो ऊर्जा की भी ऊर्जा

परमात्मा अर्थात चारों ओर  से आया  हुवा व्यापक अर्थात सर्वव्यापक


परमात्मा  अर्थात चारों ओर से आया हुवा है । वह व्यापक अर्थात सर्वव्यापक है . वह संसार के कण-कण में रमा हुवा है । यह सभी गतिमान जगत परमात्मा से है। कर्त्ता का कार्य के साथ सतत सम्बन्ध नहीं होता । क्या सृष्टि रूपी कार्य , उसी प्रकार का कार्य है , जैसे कुर्सी या कमीज । क्या परमात्मा केवल सृष्टि की रचना ही करता है , उसके पश्चात उसका इससे कोई सम्बन्ध नहीं रह जाता ? वेदांत सूत्र ' ब्रह्म जिज्ञासा ' के प्रकरण में ब्रह्म का लक्षण ' जन्माद्यस्य यत: ' करके देता है । उपनिषद के अनुसार सब भूत मात्र जिससे उत्पन्न होते हैं , जिसमें जीते हैं तथा जिसमें मृत्यु के बाद समा जाते हैं , वह जानने के योग्य है । उसकी जिज्ञासा करो । ब्रह्म सूत्र और उपनिषद आदि परमात्मा के तीन कार्य बताते हैं _ अर्थात वह केवल बढ़ई की तरह कुर्सी बनाकर छुट्टी नहीं कर लेता , उसे जगत का पालन भी करना होता है और कार्य को कारण में लय भी करना होता है । सृष्टि में नित्य संहार और सृजन  का कार्य चलता रहता है । सृजन -शक्ति नाम रूप का उद्भव करती है , उसका विकास करती है और विकास का ह्रास प्रदान करती हुयी कार्य को कारण में ले जाती है । यह क्रम सतत चलता रहता है । प्रत्येक नाम रूपात्मक सत्ता इस प्रक्रिया से बंधी हुयी है । 


एक ही सूर्य सब लोकों को प्रकाशित करता है । प्राणिमात्र के नेत्र उसके प्रकाश से ही देखते हैं और कर्म करते हैं । लोगों की आँख से होने वाले बाहर के दोषों से प्रकाश लिप्त नहीं होता । उसी प्रकार सर्वान्तरयामी होने पर वह लोक के दुखों से लिप्त नहीं होता । होने से होने होने होने से प्रकृति के प्रभाव प्रभाव प्रभाव प्रभाव से मुक्त है । अभौतिक होने से प्रकृति के प्रभाव उस तक नहीं पहुँच पाते । सौर ऊर्जा सब पदार्थों पर गिरती है फिर भी वह गंदी नहीं होती । वह परमात्मा तो ऊर्जा की भी ऊर्जा है , प्रकाश का भी प्रकाश है ; वह बाह्य गंदगी से कैसे लिप्त हो सकता है ? यथार्थ ज्ञान के अभाव में ही अवैज्ञानिक धारणाएं जन्म लेती हैं । अपौरुषेय वेद-ज्ञान के प्रकाश में यह सब मिथ्या अंधकार ठहर नहीं सकता । वैदिक ज्ञान के अनुसार _ ' अरण्यो निहित: जातवेद: ' अर्थात जिस प्रकार काष्ठ में अग्नि व्यापक है वैसे ही परमात्मा प्रकृति में व्यापक है । व्यापकता से ही वह जड़ प्रकृति को गति प्रदान करता है और सर्वदा नियम में बांधे रखता है । जिस प्रकार एक अग्नि तत्व समस्त ब्रह्मांड में व्याप्त है , वसे ही एक परम तत्व सर्व व्यापक है , उसकी सर्व व्यापकता ही सर्वज्ञता और सर्व शक्तिमत्ता है । 


श्रुति कहती है ' विष्णु कर्माणि पश्यत: ' । विष्णु अर्थात व्यापक परमात्मा को जानने के लिए उसके पराक्रम को देखो । इस सृष्टि रूप कर्म को देखने से इसके रचयिता का बोध हो जायेगा । जो सर्व व्यापक होगा वह साकार कैसे हो सकता है ? साकार का अर्थ है , जो दिक् काल आवेष्टित है । किन्तु जिसने दिक्काल को अपने में ही आवेष्टित किया हुवा है , वह साकार कैसे हो सकता है ? वेद के अनुसार _ ' न तस्य प्रतिमा अस्ति ' । उसका कोई प्रतिमान नहीं है , वह अनुपमेय है , अद्वितीय है और कोई उसके समान नहीं है और न ही कोई उससे अधिक है । ' न तस्य कार्य करणं च विद्यते ' अर्थात न तो उस परमात्मा का शरीर है न उसके अंत: करण और इन्द्रियां हैं । उसे एकदेशी मानना पाप के अतिरिक्त अपराध भी है ।

केन उपनिषद के अनुसार नेत्र जिसकी ज्योति से ही देख पाते हैं , उसे नेत्र नहीं देख सकते उसको ही परमेश्वर मानना चाहिए । जिसे आँखों से देख रहे हो वह ब्रह्म नहीं है , अपितु भ्रम ही है । जिससे वाणी का अभुदय होता है , वाणी उसका वर्णन नहीं कर सकती । जिसको तुम ब्रह्म समझ कर वर्णन कर रहे हो वह ब्रह्म नहीं है । जिसके प्रताप से मन मनन करता है ,पर मन उसको नहीं सोच सकता । जिसको तुम ब्रह्म समझ कर मनन कर रहे हो वह ब्रह्म नहीं है । वेद आदि शास्त्र ईश्वर के साकारात्व का घोर विरोध करते हैं ।

' यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह ' अर्थात मानसिक शक्तियों सहित वाणी भी यहाँ से लौट पड़ती है । न वह अंत:प्रज्ञ है और न वह बहि:प्रज्ञ है । वह सर्वथा उभय प्रज्ञ भी नहीं है । वह अनिर्वचनीय है । वह प्रमा नहीं अर्थात ज्ञान का प्रत्यय नहीं । स्थिर शरीर , निश्चल मन और सूक्ष्म बुद्धि से ही उसे अनुभूत किया जा सकता है । जाग्रत, स्वप्न सुषुप्ति इसकी अपूर्ण व्यंजना है । जो शिव, अद्वैत है । समस्त दृश्यमान विश्व ब्रह्मांड जिसके अंश काल में स्थित है , वही परमात्मा है ।

अत: वैदिक सिद्धांतों के अनुसार _ वह परमात्मा न तो जन्म लेता है और न मरता है । वह सच्चिदानन्द , निराकार , न्यायकारी , दयालु , अजन्मा , अनंत , अनादि ,अनुपम , सर्वाधार , सर्वश्रेष्ठ , सर्व व्यापक , सर्वान्तर्यामी , अजर -अमर , अभय ,नित्य-पवित्र और सृष्टि कर्त्ता है । उसी परमात्मा की उपासना करनी चाहिए ।^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^

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