बुधवार, 25 सितंबर 2013

यक्ष के युधिष्ठिर से पूछे प्रश्न

यक्ष के युधिष्ठिर से पूछे प्रश्न 


युधिष्ठिर को यह सब बड़ा विचित्र लग रहा था। जल पीने के लिए अपने ज्ञान की परीक्षा देनी होगी। यक्ष ने जल पीने से पूर्व युधिष्ठिर से कुछ प्रश्न पूछने चाहे थे। यक्ष ने कहा --' तुम्हारे इन भाइयों को मैंने जल पीने से रोका था , किन्तु अपने बल के अहंकार में वे रुके नहीं , इसलिए मैंने उनकी यह स्थिति कर दी है। यदि तुमने भी मेरी अनमति बिना जल पीने का प्रयत्न किया तो तुम्हारी भी यही स्थिति हो जाएगी। ' परिणामत: युधिष्ठिर ने उत्तर देने कि लिए कहा--' पूछो। ' यक्ष ने पहला प्रश्न किया-- ' पृथ्वी से भारी क्या है ? ' युधिष्ठिर के मन में धरती के प्रति कृतज्ञता का भाव उदित हुवा। मनुष्य धरती पर जन्म लेता है , उस पर विचरण करता है। उसमें से अन्न उगाता है और अपना उदर भरता है। धरती हमारी माता है। पर वास्तविक माता तो कुंती है। यदि मां ने युधिष्ठिर को जन्म न दिया होता , तो धरती किसका भरण- पोषण करती ? धरती वनस्पति को जन्म दे सकती है , मनुष्य को नहीं.... । युधिष्ठिर ने कहा -- ' माता का गौरव पृथ्वी से भी अधिक गरिमापूर्ण है। ' 

यक्ष ने फिर दूसरा प्रश्न किया --' आकाश से ऊंचा क्या है ? ' युधिष्ठिर ने सोचा वह क्या था , जिसकी ऊंचाई तक उनकी दृष्टि उठती नहीं थी ? कौन था , जिसकी ऊंचाई तक उठना उनका सपना था। यह सोच कर युधिष्ठिर ने कहा -- पिता आकाश से भी ऊंचा है। ' यक्ष का तीसरा प्रश्न था-- ' वायु से भी अधिक तेज गति से कौन चलता है ?'मन वायु से भी अधिक तीव्रगामी है, युधिष्ठिर ने उत्तर दिया। यक्ष ने चौथा प्रश्न किया -- ' तिनकों से भी अधिक संख्या किसकी है ? ' युधिष्ठिर सोचने लगे तिनकों से अधिक संख्या उसीकी होगी , जो अनंत है , ब्रह्म अनंत तो है पर असंख्य नहीं है। कैसी चिंता में डाल दिया इस यक्ष ने, पर हाँ चिंता तो अनंत हैं और चिंता कभी समाप्त ही नहीं होतीं। युधिष्ठिर ने कहा -- ' चिंताओं की संख्या तिनकों से भी अधिक है।' यक्ष का पांचवा प्रश्न था -- ' प्रवासी का मित्र कौन है ?' युधिष्ठिर ने कहा-- ' प्रवासी का मित्र उसका सहयात्री ही हो सकता है। हम अर्जुन के भाई हैं , किन्तु जब वह प्रवास कर रहा था , तो हम तो उसके किसी काम नहीं आ सकते थे। तब तो उसके सहयात्री ही उसके मित्र हो सकते थे। '

यक्ष ने छठा प्रश्न पूछा , अच्छा अब बताओ गृहवासी का मित्र कौन है ? ' युधिष्ठिर ने कहा -- ' गृहवासी की मित्र उसकी पत्नी है। ' पहली बार यक्ष ने आपत्ति की कि पत्नी मित्र कैसे हो सकती है ? युधिष्ठिर ने कहा कि मैं मात्र स्त्री की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं पत्नी की बात कर रहा हूँ। जो पुरुष, पुरुष के रूप में कठोर होता है , वह प्रेमी के रूप में अत्यंत कोमल होता है। जो पुरुष के रूप में वंचक हो सकता है, वही पुरुष पति के रूप में संरक्षक हो जाता है। स्त्री पत्नी बन जाए तो मित्र हो जाती है। पत्नी तो पति की दैवकृत सहचरी है। पत्नी ही काम को आंदोलित करती है। और पत्नी ही उसे मर्यादित करती है। पत्नी ही अर्थोपार्जन में नियोजित करती है और पत्नी ही लोभ का निराकरण कर संतोष करना सिखाती है। जिस पुरुष की पत्नी उसकी मित्र नहीं है , उसका कोई मित्र नहीं हो सकता। भार्या और धर्म अविरोधी हो जाते हैं , तो गृहवासी को धर्म, अर्थ, काम -- तीनों एक साथ एक ही स्थान पर मिल जाते हैं। उसका जीवन सुखी हो जाता है। यक्ष ने सातवाँ प्रश्न किया कि संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है ? युधिष्ठिर ने कहा --- ' संसार में प्रत्येक जीव को मरते देख कर भी व्यक्ति इस भ्रम में जीता है कि उसकी मृत्यु कभी नहीं होगी। इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है ? ' यक्ष का आठवाँ प्रश्न था कि समाज की रक्षा कौन करता है ? उत्तर मिला कि राज्य की रक्षा राजा करता है , किन्तु राष्ट्र की एवं समाज की रक्षा ब्राह्मण करता है।


यक्ष ने नौवां प्रश्न किया कि ब्राह्मण कौन होता है ? जन्म से, व्यवसाय से या प्रकृति से ब्राह्मण होता है ? युधिष्ठिर ने उत्तर देते हुवे कहा ---' जो व्यक्ति जन्मस्वधर्म तथा व्यवसाय से अर्थात तीनों से ब्राह्मण हो , सर्वश्रेष्ठ तो वही है। किन्तु ऐसा होता नहीं है। इसलिए ब्राह्मणत्व कुल में है, न स्वाध्याय में, न शास्त्र- श्रवण में। ब्राह्मण का हेतु आचरण में है , इसमें कोई संशय नहीं। इसलिए प्रयत्न पूर्वक सदाचार की रक्षा होनी चाहिए। जिसका आचरण नष्ट हो गया , वह तो स्वयं ही नष्ट हो गया। वह ब्राह्मण कैसे हो सकता है ? रावण जैसा आचरण हो तो कोई ब्राह्मण कैसे हो सकता है ? और दूसरी ओर विदुर है , जिनको ब्राह्मण के अतिरिक्त ओर कुछ माना ही नहीं जा सकता। तो वंश क्या करेगा , व्यक्ति ब्राह्मण तो अपने आचरण से कहला सकता है।' यक्ष ने फिर दसवां प्रश्न किया कि यदि शास्त्र पढ़कर भी व्यक्ति ब्राह्मण नहीं कहला सकता तो जीवन का उत्तम मार्ग क्या है ? युधिष्ठिर बोले---- ' संसार में सब लोग अपनी बुद्धि से चलते हैं। किन्तु बुद्धि हो तो प्रत्येक व्यक्ति अपने तर्क को अपनी इच्छानुसार प्रस्तुत कर देता है। इसलिए मार्ग वही उत्तम है, जिसका महापुरुष अनुसरण करते हैं।'




यक्ष युधिष्ठिर के उत्तरों से संतुष्ट हो गया तथा उसे जल पीने की स्वीकृति मिल गयी, पर युधिष्ठिर ने अपने भाईयों के विषय में पूछा। इसपर यक्ष ने किसी एक भाई को जीवित करने का आश्वासन दिया। इसपर युधिष्ठिर ने नकुल को जीवित करने के लिए कहा, यक्ष को इस पर अत्यधिक आश्चर्य हुवा ओर उसने पूछा नकुल ही क्यों ? युधिष्ठिर ने कहा --- ' मेरी दो माताएं हैं। कुंती का पुत्र मेरे रूप में जीवित है। यदि मैं कुंती के दूसरे पुत्र को जीवित करने का आग्रह करूंगा , तो माता माद्री के प्रति यह क्रूरता होगी। मैं अनृशंसता का व्रती हूँ यक्ष। किसी के प्रति नृशंस होना नहीं चाहता। ' यक्ष ने प्रसन्न होकर कहा --- ' तुमने अर्थ ओर काम से भी अधिक , दया और समता का आदर किया है। तुमने सिद्ध किया है कि तुम्हें शास्त्र का ज्ञान ही नहीं है, तुम उस पर आचरण भी कर रहे हो। इसलिए तुम्हारे सभी भाई जीवित हो जायेंगे।&&&&&&&&&&&&


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