सोमवार, 23 सितंबर 2013

कभी याद करने से भुला देना अच्छा

कभी याद करने से भुला देना अच्छा 

पुरानी दुखद स्मृतियाँ सजग हों तो उन्हें भुला देने में ही श्रेष्ठता


जब मन में पुरानी दुखद स्मृतियाँ सजग हों तो उन्हें भुला देने में ही श्रेष्ठता है। अप्रिय बातों को भुलाना आवश्यक है। भुलाना उतना ही आवश्यक है जितना अच्छी बात का स्मरण करना। यदि हम शरीर से , मन से आचरण से स्वस्थ रहना चाहते हैं तो अस्वस्थता की सारी बातें भूल जानी चाहिए। माना कि किसी अपने ही ने चोट पहुंचाई है। तो उन कष्टदायी अप्रिय प्रसंगों को भुला देना ही बेहतर है। उधर ध्यान न देकर अच्छे शुभ कर्मों से मन को केंद्रीभूत कर देना चाहिए। चिंता से मुक्ति पाने का सर्वोत्तम उपाय दुखों को भूलना ही है।


प्रतिकूलताओं से डरना नहीं और अनुकूलता को ही सर्वस्व मानकर न बैठो रहोगे तो अपने लक्ष्य को सरलता से प्राप्त कर सकते हो। जो मिले उसी से शिक्षा ग्रहण कर जीवन को उच्च बनाने का प्रयास करना चाहिए।जैसे-जैसे जीवन उच्च बनेगा वैसे-वैसे जो आज प्रतिकूल प्रतीत होता है, वह सब अनुकूलित दीखने लगेगा और अनुकूलता आजाने पर दुःख मात्र की निवृत्ति हो जाएगी


हमारी कोई सुनता नहीं , कहते-कहते थक गये पर सुनने वाले कुछ सुनते नहीं अर्थात उन पर कुछ असर ही नहीं होता। इसमें सुनने वाले से अधिक दोष कहने वाले का है। कहने वाले करना नहीं जानते। वे अपनी और देखें। आत्म-निरीक्षण कार्य की शून्यता की साक्षी दे देगा। वचन की सफलता का सारा स्वरूप कर्मशीलता में है। आप चाहे बोलें नहीं , थोड़ा ही बोलें पर कार्य में जुट जायिए। आप थोड़े दिनों में ही देखेंगे कि लोग बिना कहे आपकी ओर खिंचे चले आ रहे हैं। अत: कहिये कम , करिये अधिक। क्योंकि बोलने का प्रभाव क्षणिक होगा और कार्य का प्रभाव स्थायी होता है। अपनी आत्मा ही मार्ग-दर्शन के लिए पर्याप्त है। लोग अँधेरे में भटकते हैं , भटकते रहें। हम अपने विवेक के प्रकाश का अवलम्बन कर स्वत: आगे बढ़ेंगे। कौन विरोध करता है, कौन समर्थन , इसकी गणना कौन करे ? अपनी अंतरात्मा , अपना साहस अपने साथ है। सत्य के लिए , धर्म के लिए , न्याय के लिए हम एकाकी आगे बढ़ेंगे और वही करेंगे जो करना अपने जैसे सजग व्यक्ति के लिए उचित और उपयुक्त है। आप भटकना मत। आपको जब कभी भटकन आये तो आप अपने उस दिन की उस समय की मन:स्थिति को याद कर लेना जबकि आप के भीतर से श्रद्धा का एक अंकुर उगा था। उसी बात को याद टखना कि परिश्रम करने के प्रति जो हमारी उमंग और तरंग होनी चाहिए उसमें कमी तो नहीं आ रही।&&&&&&&&&&&&&&


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