शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

श्राद्ध करने या स्मारक बनाने का पुण्य-फल

श्राद्ध करने या स्मारक बनाने का पुण्य-फल उनके करने वालों को  ही    

परलोक का दूरी से कोई सम्बन्ध नहीं है। x-rays ठोस पदार्थों को चीरती हुयी पार हो जाती है। हमें दीवारों का पर्दा तोड़ना कठिन प्रतीत होता है। पर x-rays के लिए यह पर्दा कुछ भी नहीं है। गर्मी और सर्दी का प्रभाव बहुत अंशों में बाहरी प्रतिबंधों को तोड़कर भीतर चला जाता है , इसी प्रकार सूक्ष्म तत्त्वों के लिए स्थूल वस्तुओं के कारण कुछ बाधा नहीं पड़ती। हवा का समुद्र पृथ्वी के चारों ओर भरा हुवा है, पर हम उसे चीरते हुवे यहाँ-वहां घूमते रहते हैं। हमें यह प्रतीत भी नहीं होता कि हम हवा के बीच में हर प्रकार से भाग-दौड़ कर रहे हैं। जैसे पानी में मछली निर्द्वन्द्व हो घूमती है उसी प्रकार हम भी हवा में घूमते रहते हैं। मृत आत्माएं सूक्ष्म तत्वों की बनी हुयी हैं, इसलिए वे ईथर तत्त्व की भांति चाहे जहाँ आ-जा सकती हैं। उसके निवासी स्वेच्छानुसार चाहे जहाँ भूमि ,जल , पर्वत, ग्रह, नक्षत्र आदि के मध्य या ऊपर-नीचे भी रह सकते हैं। और अपने रहने के लिए सब प्रकार की सुविधाएं वहां उत्पन्न कर सकते हैं।

मृत प्राणी के साथ उसके विचार, स्वभाव, विश्वास और अनुभव भी जाते हैं विश्वासों के कारण सूक्ष्म शरीर और इन्द्रियां उत्पन्न हो जाती हैं, वैसे ही विश्वासों के आधार पर परलोक वासी के लिए गृह-वस्त्र , आहार -विहार की भी व्यवस्था हो जाती है। वे समझते हैं कि हम घरों में रहते हैं , कपड़े पहनते हैं और भोजन करते हैं। ये सब पदार्थ उनकी भावना स्वरूप होते हैं। यदि कोई परमहंस संन्यासी निर्जन वन में वस्त्र रहित और कंद-मूल फल खाकर निर्वाह करता हो तो उसका परलोक भी वैसा ही होगा। भूत-प्रेत किन्हीं विशेष स्थानों पर ठहर जाते हैं , किन्तु साधारण क्रम के अनुसार चलने वाले प्राणी स्थान सम्बन्धी बंधन में नहीं बंधते वे एक स्थान पर रहते हैं , किन्तु वह स्थान चाहे जहाँ हो सकता है।

स्त्री-पुरुष का लिंग -भेद बना रहता है। विश्वासों के आधार पर यह भी निर्भर है, जो पुरुष स्त्री-भावना का आचरण करते हैं या जो स्त्रियाँ पुरुष-भाव को हृदयंगम करती हैं , वे कुछ काल नपुंसक की दशा में रहकर लिंग-परिवर्तन कर लेते हैं और अगला जन्म परिवर्तित भावना के अनुसार होता है। यह अपवाद है। साधारणत: लिंग-परिवर्तन करने की किसी जीव की रूचि नहीं होती। शरीर सम्बन्धी अ-योग्यताएं परलोक में हट जाती हैं और वे प्राय: तरुण -दशा को प्राप्त हो जाते हैं , क्योंकि ये अ-योग्यताएं मन की नहीं , वरन एक शरीर में भी कुछ समय की हैं। इस लिए इन शारीरिक अ-योग्यताओं का मन पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ता।

परलोक में जीव इच्छा करने पर कोई जीव किन्हीं दूसरे जीवों से मिल भी सकता है। इच्छा होने पर ही उन्हें दूसरे परलोकवासी दिखाई देते हैं और उनसे विचार-परिवर्तन करना सम्भव होता है। यह मिलन दो चेतनाओं का मिलन होता है। विचारों का आदान-प्रदान ही हो सकता है। शरीर कोई किसी का नहीं देखता क्योंकि परलोकवासी के सूक्ष्म शरीर वास्तव में देखने योग्य नहीं होते। घर, कपड़े , भोजनादि की हर जीव की अपनी कल्पना होती है। उसका देखना भी दूसरे के लिए कठिन है। स्वर्ग-नरक के दुःख-सुख का दूसरा परिचय पाते हैं, पर यह नहीं देख सकते कि वह कुम्भीपाक नरक में पड़ा है या रौरव में। स्वर्गवासी आत्माओं के शरीर में एक प्रकार का तेज होता है, जिससे उनके सुखी होने का परिचय मिलता है। मृत आत्माएं एक-दूसरे से कह-सुन सकती है, पर उनके लिए यह कठिन है कि दुःख-सुख में हिस्सा बाँट सकें।कुछ आत्माएं अपने पूर्व परिचितों मृतकों के साथ रहना पसंद करती हैं और उनका एक समुदाय बन जाता है। ऐसे समुदाय निम्न लोक में ही होते हैं। उच्च लोकवासी जन्म-जन्मान्तरों में आकर्षित प्राणियों के साथ अपने सम्पर्कों का ध्यान करते हुवे इन भ्रम-बन्धनों की व्यर्थता को समझ जाते हैं और मोह जाल से दूर रहते हुवे आत्मोन्नति का एकांत प्रयत्न करते हैं। आत्माएं किसी बाड़े में या अन्य किसी के शासन में में नहीं रहतीं, जीवों पर उनकी अंतरात्मा का ही शासन रहता है।

श्राद्ध करने या स्मारक बनाने का पुण्य-फल उनके करने वालों को ही प्राप्त होता है। यह दान-पुण्य परलोकवासी की कुछ विशेष सहायता नहीं कर सकता , क्योंकि इन उदार कार्यों के करने में उनका कुछ हाथ नहीं है। यह निश्चय है कि पुण्य फल का अदला -बदला नहीं हो सकता। जो करता है , वही भरता है। फिर भी परलोकवासी जब यह देखता है कि मेरे पूर्व-सम्बन्धी मेरे प्रति कृतज्ञता और उपकार के भाव प्रदर्शित कर रहे हैं , तो उसे संतोष होता है और कभी उनके वश की बात हो एवं अवसर पाए , तो उस उपकार भाव का किसी अदृश्य प्रकार से बदला चुकाते हैं। अपने प्रियजनों की सहायता के लिए जो कर सकते हैं , करते हैं। सम्बन्धियों के रोने -पीटने या शोक प्रदर्शन करने से मृतक को दुःख होता है। और उसकी शांति में बाधा पड़ती है। इसलिए उचित यह है कि मृतक के साथ मोह-बंधन शीघ्र ही तोड़ लिए जाएँ और केवल शांति की उच्च कामना की जाये।**************************************************************

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