रविवार, 22 सितंबर 2013

महर्षि वेदव्यास ने असली पुराण लिखा

पुराणों में हमारा इतिहास 



हमारा प्राचीनतम इतिहास राजा परीक्षित के राज्यारोहण तक का पुराणों और थोडा बहुत महाकाव्यों में पाया जाता है। लेकिन पुराण जैसे कि आज पाए जाते हैं , गुप्त-काल से पहले नहीं लिखे गये हैं , और उनमें मिलावट और विशेष कर धार्मिक दलबंदी भी बहुत की गयी है। इसी कारण अंग्रेज इतिहासकारों ने उनके साक्ष्य को प्रमाण रूप में स्वीकार नहीं किया। किन्तु पार्जिटर के गहन अध्ययन के पश्चात यह माना जाने लगा कि पुराणों में हमारा इतिहास दिया गया है। अब तो यह सिद्ध हो गया है कि पुराणों दिया गया इतिहास वेदों के पूर्व का भी माना जाता है। हमारी प्राचीनतम परम्परा उसमें सुरक्षित है तथा उसकी सामग्री पुरानी एवं मूल्यवान है।

आज अठारह महापुराण और अनेक उप-पुराण हैं , लेकिन शुरू में पुराण एक था , जिसकी सामग्री वेदव्यास ने एकत्रित करके अपने शिष्य वैशम्पायन को दी थी। पृथु के काल से सूत को यह कर्त्तव्य सौंपा गया था कि वह पुराण याद करे और सुनाये। तभी से प्राचीन ऐतिहासिक सामग्री एकत्रित की गयी। बीच में प्रलय होने के कारण इसका तारतम्य टूट गया। सूत खो गये और पुरानी परम्परा टूट गयी, जो कुछ थोडा बहुत याद रहा , वह सबकुछ वेदव्यास द्वारा रचित पुराण में एकत्रित कर दिया। इसी कारण जितना विस्तृत वर्णन प्रलय के बाद का मिलता है , उतना पहले का नहीं।

पहले पुराण वेद आदि के समान याद किया जाता रहा। अपनी विशालता के कारण पाठ मुंह दर मुंह बदलता रहा और पुराना खोता रहा एवं नया जुड़ता रहा। बाद में भारत के भिन्न-भिन्न भागों में रहने वालों ने याद करने में अपने-अपने भागों के राजाओं को अत्यधिक महत्त्व दिया तथा दूसरों को कम। इसके बाद जब हिन्दू धर्म में अनेक मत प्रचलित हुवे तो हर मतानुयायी ने अपने मत को प्रमुखता देने के कारण पुराण को उसी के अनुसार परिवर्तित कर दिया। तथ्य कम होता चला गया , और धार्मिक आडम्बर बढ़ता चला गया। प्रदेश और धर्म के कारण मूल पुराण के अठारह मुख्य भाग तथा सौ से ऊपर उप-भाग हो गये। विद्वानों ने परिश्रम किया और इन सब के पाठों को मिलाकर खोज निकाला कि मूल पुराण एक ही था और इन सबमें एक ही इतिहास पाया जाता है, किसी में अधिक, किसी में कम और किसी में अव्यवस्थित। यही हाल रामायण और महाभारत का है और जहाँ पुराण, महाकाव्यों एवं वेदों का वर्णन बिलकुल मिल जाता है, वहां तो हम ठोस भूमि पर खड़े हैं।

पुराण में वर्णित है कि पांडवों पांचवें वंशज निचक्षु के समय ह्स्त्नापुर पर टिड्डियों का आक्रमण हुवा था तथा गंगा में बाढ़ आने के कारण वह नष्ट हो गया और कुरुओं ने गंगा नदी से तीन सौ मील नीचे जाकर कौशाम्बी में नई राजधानी बसाई , जो बुद्ध के समय बहुत प्रसिद्ध थी। 1956 में हस्तिनापुर की खुदाई ने यह सिद्ध कर दिया है कि बाढ़ के कारण यह विनष्ट हुवा था। यह उदाहरण पुराण में इतिहास की सत्यता को इंगित करता है।

विदेशी कहते हैं कि हिन्दू इतिहास लिखना नहीं जानते थे। किन्तु यह बात ठीक नहीं है, जिन हिन्दुओं ने लाखों पुस्तकें धर्म, दर्शन, अर्थशास्त्र, नाट्य आदि अनेक शास्त्रों पर लिखीं , वे इतिहास से अछूते कैसे रह सकते हैं ? विदेशी आक्रमणों के समय हमारा सारा साहित्य जला दिया गया। ये ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकें अधितर, चीन और बृहत्तर भारत में मिलीं या भारत के गांवों में जहाँ जनता ने प्राण पर खेलकर धर्म-शास्त्रों को छिपाए रखा। बाहर वाले हमारे इतिहास में क्या रूचि रख सकते हैं ? तथा देश में इतिहास की पुस्तकों के साथ वह मान्यता नहीं थी , जो धर्मशास्त्र आदि की थी। हुएन त्सांग ने लिखा है कि हर राजा के दरबार में इतहास-लेखक रहता था। कौटिल्य ने भी अर्थशास्त्र में इतिहास-लेखन पर बल दिया है और वायु पुराण में कहा गया है---- प्राचीन महापुरुषों के अनुसार , सूत का प्रमुख कर्त्तव्य था कि वह देवों की , ऋषियों की तथा महापराक्रमी राजाओं की वंशावली रखे और महापुरुषों कि परम्परा का यथा-तथ्य रखे। पार्जिटर तथा अन्य कई इतिहास ज्ञाता मानते हैं कि इन्हीं सूतों की वंशावली को एकत्र करके महर्षि वेदव्यास ने असली पुराण लिखा था। बाद कई लेखकों ने अपने देवी-देवताओं की स्तुति में असली पुराण का भाग लेकर तथा अपनी ओर से नई-नई बातें मिलाकर अलग-अलग पुराण रचे। जो एक इतिहास की पुस्तक थी , वह बंटकर धर्म के ढ़कोसलों में जा छिपी। इस समय स्थित सब पुराणों का अध्ययन तुलनात्मक दृष्टि से करके प्राचीन इतिहास का कलेवर खोज निकाला गया है। यह प्राचीन इतिहास पर्याप्त विश्वसनीय है और अनेक स्थानों पर वेदों से अनुमत होता है।

वेद में जीवन और धर्म के विषय में मनुष्य ने आरम्भ से जो सोचा एवं सीखा हैवेद उसका संकलन है। सभ्यता के सुदूर क्षितिज से जीवन कैसे जीया जाता था, कैसे वह धारण किया जाता था , इस विषय पर मन्त्र-द्रष्टा ऋषियों ने जो सोचा और कहा, वह उनकी पीढ़ियों ने मौलिक और मौखिक रूप से सुरक्षित रखा । स्थान की कमी के कारण जब वेद चारों ओर फैले तो उन्होंने एक विशेष ऋषि-वर्ग को ये मन्त्र और सूक्तों को स्मृति में संजोये रखने का कार्य सौंपा। जिससे एकरूपता बनी रहे। इनको भी वेदव्यास ने एकत्रित करके चार भागों में विभाजित किया और अपने चार शिष्यों को पढ़ाया। पुराण मनु-पुत्रों का इतिहास है। स्वायम्भुव मनु के साथ जो देव पर्वतों से संतल भूमि पर उतर कर आये, उनमें सप्तर्षियों ने वेद को स्मरण रखा तथा सूत और मागध ने उनका इतिहास एवं उन्हें सुरक्षित रखा।&&&&&&&





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