शनिवार, 21 सितंबर 2013

धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे

सारे देश में भरत के वंशज फ़ैल गये , इसलिए इस देश का नाम भारत के रूप में विकसित 



इस देश को भारतवर्ष कहते हैं। पहले इसका यह नाम नहीं था। अथर्ववेद के पृथिवी सूक्त में पृथिवी, भूमि या माता भूमि नाम मिलता है। महाभारत और पुराणों में इसके लिए भारतवर्ष नाम प्रचलित हो गया था। भारत के विषय में महाभारत में अनेक काव्यमय पद पाए जाते हैं। विष्णुपुराण में कथन है--

" गायन्ति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारत भूमि भागे ।

स्वर्गापवर्गास्पद हेतुभूते भवन्ति भूय: पुरुषा: सुरत्वात ॥ "

अर्थात देवता भी स्वर्ग में यह गान करते हैं --- धन्य हैं वे लोग जो भारत-भूमि के किसी भाग में उत्पन्न हुवे। वह भूमि स्वर्ग से बढ़कर है क्योंकि वहां स्वर्ग के अतिरिक्त मोक्ष की साधना की जा सकती हैं। स्वर्ग में देवत्व भोग लेने के बाद देव मोक्ष की साधना के लिए कर्मभूमि भारत में फिर जन्म लेते हैं. स्वर्ग की कल्पना तो संसार के अनेक देशों में हुयी है। परन्तु मोक्ष की कल्पना भरतीय दर्शन की अपनी विशेषता है। सांसारिक सुखों से ऊपर उठकर स्वर्ग का सुख है , जिसकी ओर सब धर्म इंगित करते हैं। लेकिन भारत का धर्म ऐसा है जो उस सुख का भी त्याग करके मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग दिखता है। इस सांस्कृतिक मातृभूमि का भौतिक रूप भी पुराणों में वर्णित है--- " उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमवत दक्षिणं च यत । वर्षं यद भारतं नाम यत्रेयं भारती प्रजा॥ " अर्थात समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण का जो भू-खंड है , वह भारत है और इसमें रहने वाली प्रजा भारती जनता है। पूर्व के महोदधि अर्थात बंगाल की खाड़ी एवं पश्चिम के रत्नाकर अरब-सागर के मिलन-स्थल के पास कुमारी अंतरीप है , जिसे कन्याकुमारी कहते हैं। वहां तप करती हुयी कुमारी पार्वती का मन्दिर है, जो अहर्निश उत्तर में कैलास पर ध्यानमग्न बैठे शिव की तपस्या कर रही है। देश की एकता की चेतन-प्राणधारा का इससे सुंदर रूप क्या हो सकता है ?

इस देश का भरत नाम कैसे पड़ा , इस पर विचार करना है। महाभारत के आदि पर्व में कहा गया है कि भरत राजा के नाम से देश को भारत, प्रजाओं को भारती कहा गया। हस्तिनापुर के मुख्य राजवंश को भरत राजवंश और उसके राजाओं को भारत कहने लगे। प्राचीन काल से लेकर आज तक हर देश के एकीकरण में इसी भावना ने कार्य किया कि किस राजा ने सारा देश जीतकर उसे आदर्श शासन-व्यवस्था दी। जितने भरत ने अश्वमेध यज्ञ किए, उतने किसी दूसरे चक्रवर्ती ने नहीं किए और वे उस समय तक ज्ञात देश के हर भाग में किये। ये यज्ञ भी भारत के एक होने की कल्पना को मूर्त रूप देने में बड़े सहायक थे। ' अभिज्ञानशाकुंतलम' के अंक 7 के अंतिम श्लोक में कालिदास ने लिखा है कि इसी भरत के नाम से हमारा यह देश ' भारतवर्ष ' के नाम से प्रसिद्ध हुवा।

ऋग्वेद में भरत आर्यों की एक प्रतापी शाखा या जन का नाम था, भरत-जन जिस जनपद में आ बसा था वह भरत जनपद कहलाया। इस जनपद की प्रजा भारती कहलाई। धीरे-धीरे यह भरत-जन समस्त देश में फैलता रहा और उसी प्रकार भारत का नाम क्रमश: फैलता चला गया। दश राज्ञ युद्ध में भरत-जन का वर्णन हुवा है। कुछ पुराणों में दुष्यंत-पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ने का उल्लेख मिलता है। परन्तु कुछ अध्यायों में ऋषभ-पुत्र भरत को यह सम्मान दिया है।

इन सब स्रोतों का अध्ययन करके एक चित्र हमारे सामने आ जाता है। किसी देश का नाम किसी राजा पर पड़ने का अर्थ यह नहीं है कि उसने घोषणा कर दी हो कि आज इस देश का नाम उसके नाम से ही प्रसिद्ध होगा। यह एक सुदीर्घ एवं लम्बी चलने वाली प्रक्रिया है। ऋषभदेव के पुत्र भरत के समय मानवों की बस्ती बहुत कम ही थी। साठ-सत्तर मानवों के कुछ नगर राज्य सरस्वती नदी के तट पर बस गये थे। उस समय इस देश का नाम भारत पड़ने का प्रश्न ही नहीं उठता। इधर दुष्यंत-पुत्र भरत के समय सारे उत्तरी भारत-खंड पर मानव राज्य फ़ैल चुके थे। किसी महान राजा के बाद उसके वंशज उसके नाम से प्रसिद्ध हुवे , जैसे इक्ष्वाकु के पुत्र-पौत्र भी इक्ष्वाकु-वंश में प्रसिद्ध हुवे; पर उनकी प्रजा इक्ष्वाकु-जन या वंश नहीं कहला पाई। किन्तु सभी साहित्यिक स्रोतों में लिखा है कि भरत के नाम पर उसके राज्य के सारे जन भरत जन के नाम से प्रसिद्ध हुवे , सम्भवत: इस कारण से भी भरत का अपना कोई पुत्र ही नहीं था; अपितु समस्त जनता ही भावुकता या प्रेमवश उसकी सन्तान बन स्वयं अपने को भारत कहने लगी। और धीरे-धीरे ये भारत-जब सारे देश में फैलते रहे। सूर्यवंश केवल अयोध्या और मिथिला में ही सीमित रहा और भरत के विभिन्न वंशज --- कौरव, पांडव, पंचाल, मत्स्य, मागध, मद्राधिप, वृष्णि, यादव, अंगराज,त्रिगर्त आदि सारे देश में फ़ैल गये। क्योंकि सारे देश में भरत के वंशज फ़ैल गये , इसलिए इस देश का नाम भारत के रूप में विकसित हो गया।*****************



2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद विस्तृत और ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए साधुवाद

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  2. अपनी मातृभूमि भारत की महिमा पढ़ कर अपार आनंद हुआ।अति सुंदर वर्णन।

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