सोमवार, 16 सितंबर 2013

वेद पूर्ण धर्म का मूल आधार

' वेद: अखिलो धर्म मूलं ' 


' वेद: अखिलो धर्म मूलं ' अर्थात वेद धर्म का आधार है। वेद का अर्थ ज्ञान है। मनु की यह उक्ति पारस्परिक व्यवहार व सामाजिक आचार-संहिता का मूल ज्ञान निश्चित करती है। ऋषियों द्वारा वेद का स्वत: प्रमाणत्व वस्तुत: ज्ञान की स्वीकृति है। ज्ञान की पात्रता के लिए जिस विकसित मस्तिष्क की आवश्यकता है , वह प्रकृति ने मनुष्य को प्रदान किया है। मानव-मस्तिष्क की संरचना और क्रिया-पद्धति सिद्ध करती है कि जीवन का परम उद्देश्य ज्ञान की सम्प्राप्ति है।

मानव-जन्म अत्यंत दुर्लभ है। इसे पाकर जो मनुष्य परमात्मा की प्राप्ति के साधन में तत्परता के साथ नहीं लग जाता , वह बहुत बड़ी भूल करता है। अतएव वेद-श्रुति कहती है कि जब तक यह दुर्लभ मानव-शरीर विद्यमान है , भगवत्कृपा से प्राप्त साधन-सामग्री उपलब्ध है ; तभी तक शीघ्र से शीघ्र परमात्मा को जान लिया जाए तो सब प्रकार से कुशल है और मानव-जन्म की परम सार्थकता है। यदि यह अवसर हाथ से निकल गया तो महान विनाश हो जाएगा एवं बार-बार मृत्यु-रूप संसार के प्रवाह में बहना पड़ेगा। फिर रो-रोकर पश्चाताप करने के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं रह जायेगा। संसार के त्रिविध तापों और विविध शूलों से बचने का यही एक परम साधन है कि जीव मानव-जन्म में दक्षता के साथ साधन-परायण होकर अपने जीवन को सदा के लिए सार्थक कर ले। मनुष्य जन्म के अतरिक्त जितनी और योनियाँ हैं , सभी कर्मों का फल भोगने के लिए ही मिलती हैं। उनमें जीव परमात्मा को प्राप्त करने का कोई साधन नहीं कर सकता। बुद्धिमान पुरुष इस बात को समझ लेते हैं और इसी से वे प्रत्येक जाति के प्रत्येक प्राणी में परमात्मा का साक्षात्कार करते हुवे सदा के लिए जन्म-मृत्यु के चक्र से छूटकर अम्र हो जाते हैं।

मात्र कुछ अच्छे शब्दों को तोते की तरह रटने से क्रिया-सिद्धि नहीं होगी, इसके लिए तुम्हें कर्म-यज्ञ में प्रवृत्त होना पड़ेगा। कर्म का औचित्य यही है कि वह ज्ञान प्राप्त कराने वाला हो। अस्तु, अंत:करण को जो ज्ञान-प्राप्ति का उपकरण है , उसे काम में लेना सीखो। इसलिए अप्रतिबद्ध होकर दर्शन, श्रवण और मनन करने का अभ्यास डालना चाहिए। मल-विक्षेप आवरण से रहित चित्त-भूमि पर ज्ञान अंकुरित होता है। आनन्द ज्ञान-वृक्ष पर लगने वाला फल है। इसलिए वैदिक दर्शन ब्रह्मानंद की प्राप्ति का लक्ष्य माना जाता है। अत: वेद वस्तुत: ज्ञान के परम भंडार हैं , वहां वे कर्म और उपासना के भी अक्षय स्रोत हैं। वास्तव में वेद पूर्ण धर्म का मूल आधार है।&&&&

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