शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

पहली धार्मिक क्रांति जिसका अग्रदूत अगस्त्य

पहली धार्मिक क्रांति जिसका अग्रदूत अगस्त्य 


भारत एक विशाल देश है। इसकी जलवायु समशीतोष्ण है। अत: जीवन-यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यहाँ बड़ी विशाल सदानीरा नदियाँ हैं , जो भूमि को कृषि के लिए उपयोगी बनाती हैं। इसमें पर्वत भी अनेक हैं। अनेक उपजाऊ पठार और फैली हुयी घाटियाँ हैं। इसके घने विस्तृत वनों में हर प्रकार की जड़ी-बूटियाँ भी पायी जाती हैं। साथ ही दक्षिण भारत तो गर्म मसालों का देश जग-प्रसिद्ध है। अनेक प्रकार की जातियों के वास से यहाँ विभिन्न प्रकार की संस्कृतियाँ विकसित हुयीं।

असंख्य जन-जातियों में यह प्रवृत्ति रही है कि कि दूसरी जाति मेरी शत्रु है , उससे बचकर रहना या उसे समाप्त करना ही मेरा धर्म है , जैसा आज भी अंडमान-निकोबार द्वीप-समूह की कुछ जातियों में पाया जाता है। लेकिन हिमालय की उपजाऊ घाटियों और वनों में तथा नीचे उतर कर गंगा-सिन्धु उपजाऊ मैदानों में भोज्य-सामग्री प्रचुर मिलने के कारण मानव को प्रकृति को पहचानने और दूसरी तरफ ध्यान देने का अवकाश मिला और वहां जीवन जीने के नियमों और उस पर प्रकृति के प्रभाव के ज्ञान का प्रादुर्भाव हुवा। ऋत का विकास चलता रहा। बुद्धिमान विचारक ऋषियों ने अपने-अपने आश्रम बना लिए और सहज जीवन जीने की कला को खोजना आरम्भ किया। एकरूप से यही धर्म का प्रारम्भ था।

भारत में 2542 ईसा पूर्व पहली धार्मिक क्रांति हुयी, जिसका अग्रदूत अगस्त्य था। उसने घूम-घूम कर जितनी आदिम जनजातियाँ मिलीं उनसे घुल-मिलकर उनकर संस्कार सीखें और सबको साथ मिलकर रहने की राह भी दिखाई। उसके समकालीन मानवों ने उसे जादूगर कहा और यज्ञ में उसे सप्तर्षि-मंडल में स्थान नहीं मिल सका था,किन्तु उसके छोटे भाई ब्रह्मर्षि वसिष्ठ ने उसे पूरा मान दिया और ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने उसके दक्षिण भारत में चले जाने पर उसका कार्य आगे बढ़ाया। इस काल में अनेक महर्षि हुवे , जिन्होंने ऋग्वेद और अथर्ववेद के अधिकतर सूक्तों का प्रणयन किया।

इस पहली क्रांति को अग्रसारित करने वाला अनासक्त योगी श्री कृष्ण था। कृष्ण ने गीता के माध्यम से अद्भुत ज्ञान प्रदान किया। इन्होंने बताया कि यह देह भगवान का घर है। धर्म की राह पर चल कर ही भगवान को पाया जा सकता है। इसके लिए कर्म सभ्यता के आरम्भ से ही किया जा रहा है। ठीक कर्म करने के लिए ज्ञान आवश्यक है। और कर्म करते समय भगवान का ध्यान रखना भक्ति है। इस प्रकार ज्ञान, कर्म और भक्ति मिलकर योग है , परन्तु कर्म मानव को बांधता है। अनासक्त योगी की अनुपम देन है फल की इच्छा न करो तो कर्म का बंधन छिन्न-भिन्न होकर निष्काम कर्म हो जायेगा।********


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