सोमवार, 16 सितंबर 2013

भय उत्पन्न करने में सर्प का प्रतिबिम्ब

क्रोध के कारण मनुष्य पागल हो जाता है 

क्रोध के कारण मनुष्य पागल हो जाता है और इतना पागल कि वह अपने वास्तविक स्वरूप को ही भूल जाता है । वस्तु की यथार्थता उसकी दृष्टि से लुप्त हो जाती है । वस्तुत: मनुष्य क्रोध के वशीभूत कुक्कुर -वृत्ति का हो जाता है। जिस प्रकार कुत्ता दूसरे कुत्ते को सहन नहीं कर पाता , उसी प्रकार क्रोधी मनुष्य का भी स्वभाव होता है। कुत्ता जैसे कुत्ते को देखकर भौंकता है उसी प्रकार क्रोधी भी दूसरे मनुष्य क्रोधी बना देता है और वे परस्पर क्रोध का व्यवहार करते हैं । जैसे कोई कुत्ते को लाठी मारता है तो वह दूम हिलाते हुवे लाठी को चाटने लगता है । परन्तु सिंह लाठी की ओर नहीं अपितु लाठी मारने वाले की ओर ही झपटता है । विवेकी मनुष्य की दृष्टि सिंह की तरह होती है और क्रोधी व्यक्ति की दृष्टि कुत्ते की तरह होती है । एक मूल कारण को दूर करने का प्रयास करता है और दूसरा मूल कारण को समझ ही नहीं पाता है ।


सामान्यत: हम देखते हैं कि बीच सड़क पर किसी ने किसी को गोली मार दी और वह घायल हो गया , तब उसके साथ जो उसके घरवाले या मित्र लोग होते हैं तो वे गोली मारने वाले का पीछा करने लगते हैं पर उस घायल व्यक्ति को अनदेखा कर लेते हैं । मान लो कि यदि गोली मारने वाला अगर मिल भी जाये तो लाभ क्या होगा ? आपको लाभ होगा घायल व्यक्ति के बचाने पर । लेकिन क्रोध ऐसा नहीं करने देता । जब क्रोध विराजमान होगा , तब वहां विवेक टिक ही नहीं पायेगा ।


क्रोध विचार उत्पन्न करने में मदिरा का मित्र है , भय उत्पन्न करने में सर्प का प्रतिबिम्ब है । दूसरों को तथा अपने को जलाने में क्रोध अग्नि का सहोदर है। कुत्ते में एक आदत और होती है , वह है _ ईर्ष्या , जलन और गुर्राने की । एक गली का कुत्ता अगर दूसरी गली में आ जाये , तो पहली गली वाला कुत्ता उसे भौंक-भौंक कर भगा देता है । जैसे दुष्ट प्रकृति वाला शिष्ट प्रकृति वाले से , कामी सत्चरित्र से , चोर स्वभावगत जागने वाले से , पापी धर्मात्मा से , भीरु शूरवीर से , कवि कवि से , रसोइया रसोइया से , वैद्य वैद्य से , ब्राह्मण ब्राह्मण से , विद्वान् विद्वान् से , राजा राजा को देखकर गुर्राने लगते हैं , वैसे ही क्रोधी व्यक्ति करुणावान को देखकर उन पर कुपित होता है ।

क्रोध के आवेग के कारण शरीर के भीतर ऐसे अनेक रसायन उत्पन्न हो जाते हैं , जिनकी तुलना में सांप का विष भी कम मारक होता है । क्योंकि सांप के मुंह में एक थैली होती है , जिसमें उसका सारा विष इकट्ठा रहता है । लेकिन मनुष्य के शरीर में ऐसी कोई थैली नहीं होती , अत: क्रोध के समय में मनुष्य के शरीर में पैदा हुवा क्रोधरूपी जहर उसकी समस्त नस-नाड़ियों में फैल जाता है । जैसे आग से दाह ही पैदा होता है और विष पीने से मृत्यु ही होती है ; उसी प्रकार क्रोध से तनाव एवं अशांति ही पैदा होती है । कहा भी गया है _ ' चाहते हो जीवन में शांति । तो क्रोध को वश में करो । तुम्हारे ही क्रोध ने , तुम्हें बर्बाद कर डाला । '#######



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