शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

शिशु का चरित्र उसकी गर्भावस्था में ही

आदतों द्वारा अंकित व्यक्तित्व की छाप को चरित्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।           



चरित्र की परिभाषा ऐसे गुणों या विशेषताओं के रूप में की जा सकती है, जो किसी व्यक्ति या वस्तु के अस्तित्व को दूसरों से पृथक करती है; किसी व्यक्ति या राष्ट्र के विशेष मानसिक तथा नैतिक गुणों का समुच्चय , अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु के अस्तित्व पर प्रकृति, शिक्षा या आदतों द्वारा अंकित व्यक्तित्व की छाप को चरित्र के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में --" तुम्हें चरित्र की , इच्छा-शक्ति को सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। अपनी इच्छा-शक्ति का उपयोग करते रहो और वह तुम्हें ऊपर ले जाएगी। यह इच्छा-शक्ति सर्व-शक्तिमान है 

चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारें तोड़कर अपना रास्ता बना सकता है। " किसी भी व्यक्ति के संस्कारों की समष्टि , उसकी सभी मानसिक वृत्तियों का संकलन ही उसका चरित्र है। अपने विचारों के द्वारा ही हमारा निर्माण हुवा है। विचार जीवित रहते हैं और वे दूर-दूर तक जा पहुंचते हैं। अत: अपने विचारों के बारे में सावधानी बरतो। हमारा प्रत्येक कार्य , प्रत्येक गतिविधि , प्रत्येक विचार मन पर संस्कार छोड़ जाता है। मन के इन्हीं संस्कारों के योग से हमारे प्रतिक्षण का अस्तित्व निर्धारित होता है। प्रत्येक व्यक्ति का चरित्र इन संस्कारों की समष्टि से निर्धारित होता है। यदि अच्छे संस्कारों का प्राबल्य हो , तो चरित्र अच्छा हो जाता है, और बुरे संस्कारों से वह बुरा हो जाता है।

चरित्रवान मनुष्य यदि उन्नति की ओर बढ़ता है , तो चरित्र- हीन व्यक्ति अधोगति को प्राप्त करता है। चरित्रवान व्यक्ति इतिहास का निर्माण करता है। और इससे रहित व्यक्ति इतिहास की मार खाकर रह जाता है। चरित्रवान व्यक्ति मानवता की आशा, सांत्वना, भलाई , शांति तथा प्रेरणा का कारण बनता है। जबकि चरित्र-हीन व्यक्ति समाज में कठिनाइयाँ , संघर्ष , चिंता और दुःख उत्पन्न करता है। जीवन के लिए चरित्र इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसके बिना जीवन-धारण मृत्यु से भी बदतर है। चरित्र में ही जीवन की प्रत्येक पहेली को सुलझाने की क्षमता है। इसमें प्रत्येक कुचक्र को तोड़ने की शक्ति है।

 ऐसा कोई रहस्य नहीं , चरित्र जिसका उद्घाटन न कर सके। ऐसा कोई भी घाव नहीं , जिसे यह भर न सके। हिन्दू मनोविज्ञान के अनुसार शिशु का चरित्र उसकी गर्भावस्था में ही गठित होने लगता है। माता-पिता के विचार कुछ हद तक आकारहीन शिशु के व्यक्तित्व में अंकित हो जाते हैं। मनु-स्मृति के अनुसार मानव को रूपायित करने वाले सामाजिक समूहों में परिवार ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। विवाह एक परिवार में परिणत होता है और शिशु माता-पिता के प्रत्यक्ष एकत्व तथा उनकी उपलब्ध अवस्था का प्रतीक बन जाता है। चरित्र-निर्माण काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि माता-पिता वर्धमान बालक के मन को किस प्रकार का आहार देते हैं। 


सामान्यत: बालक के चरित्र-निर्माण में अध्यापक से दस गुना आचार्य का , आचार्य से सौ गुना पिता का तथा पिता से हजार गुना माता का योगदान होता है। माता-पिता तथा शिक्षकों द्वारा अनजाने ही , परन्तु निश्चित रूप से पड़ने वाले इन भले-बुरे प्रभावों के अतिरिक्त, उस पर भी सामाजिक परिवेश का सशक्त प्रभाव पड़ता है। केवल घरों में ही चरित्र- निर्माण के द्वारा इस प्रभाव को रचनात्मक ढंग से सम्भाला जा सकता है।


व्यावहारिक रूप से कहा जाए तो चरित्र-निर्माण का अर्थ है -- आत्मसंयम और आत्मसंयम से देह-मन रूपी यंत्रों का ज्ञान तथा उन पर नियंत्रण की क्षमता का बोध होता है। श्रीकृष्ण ने गीता में देह, मन तथा वाणी के द्वारा त्रिविध तपस्या का अभ्यास को वर्णित किया है। देवताओं, द्विजों, आचार्यों तथा ज्ञानियों की पूजा, स्वच्छता,सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिसा को शारीरिक - तप कहा है।


 वाचिक तपस्या के अंतर्गत सत्य, मधुर तथा हितकर वाणी का प्रयोग एवं वेद-शास्त्रों का नियमित अभ्यास है। मानसिक-तप के अंतर्गत निर्भयता, चित्तशुद्धि,ज्ञान तथा योग में निष्ठा, दान, आत्मसंयम, यज्ञ, शास्त्रों का अध्ययन, तपस्या और सरलता है। चरित्र-निर्माण की व्यावहारिक आधार-शिला के अंतर्गत यम- नियम साधनों के प्रयोग पर बल दिया गया है। जीवन क्षणिक है और चरित्र-गठन एक लम्बी प्रक्रिया है; अत: किसी को भी इनके पालन में विलम्ब नहीं करना चाहिए। अहिंसा, सत्य, अस्तेय-- अर्थात चोरी न करना, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह अर्थात संग्रह का अभाव यम हैं। शौच, संतोष, तप, स्वध्याय तथा ईश्वरोपासना नियम हैं। चरित्र को समृद्ध बनाने के लिए विद्यार्थी में निम्न पांच शक्तियों का होना नितांत आवश्यक है--- श्रद्धा विवेक , अनुचित कार्यों से भय, उत्साह तथा प्रज्ञा। अत: चरित्र के निर्माण हेतु ऊर्जा , इच्छाशक्ति , स्व-कल्पना तथा उत्साह का निरंतर उपयोग करते रहना चाहिए।**********************************



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