बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

ओषध -प्रार्थना

औषध एक रोगनाशक द्रव्य है 




ओषध -प्रार्थना, शांति - पाठ में की गयी है । ओषधि चन्द्र -तापी होती है । साथ ही यह मन एवं बुद्धि का विकास करती है । चन्द्रमा ओषधि का पति है एवं स्वामी है ।


 इन ओषधियों का विकास रात्रि को ही अधिक होता है । फल पकने के बाद इनका अंत हो जाता है । जिस प्रकार केले एवं धान आदि का हो जाता है। ओषध फल पकने के बाद अनेक फल और पुष्प से संयुक्त होती हैं।


 गाय आदि का दूध भी ओषध का ही कार्य कार्य करता है। लता आदि को भी ओषध की श्रेणी में रखा जा सकता है। ओषध से तैयार द्रव या पदार्थ औ षध कहलाता है। 


औषध एक रोगनाशक द्रव्य है। यह औ षध शरीर के रोगों का निवारण करती है। यह क्रमश: शरीर -जनित रोगों का उपशमन एवं शोधन करती है । यह शरीर अनेक प्रकार के दोषों से संयुक्त होजाता है। आयुर्वेद के अनुसार वात, पित्त एवं त्रिदोष हैं ,इनकी साम्यावस्था ही शरीर को स्वस्थ रखती है। इनके विषम होते ही रोग जन्म लेने लगते हैं, ओषधि इन दोषों का निराकरण करने का प्रयास करती है। वस्तुत: ओषध अत्यधिक गुणकारी है । ओषध एवं वनस्पति के अंतर को समझना चाहिए ,ओषध जहाँ चन्द्र- तापी होती हैं ,वहां वनस्पति सूर्य - तापी होती है । देखें ---वनस्पति?**************************


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