शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

' फूटा कुम्भ जल जल ही में समाना '

जैसे ग्रहण हटने पर सूर्य प्रकाशित हो जाता है , वैसे ही आत्मा प्रकाशवान हो जाता है। 




योगाभ्यास करने से साधक को अपने स्वरूप का ज्ञान हो जाता है। यह सब मन और बुद्धि के निर्मल होने से हो पाता है। प्रारब्ध कर्मों के कारण शरीर रूपी पिंजरा अभी बना हुवा है। उसने जान लिया है कि इन २४ धातुओं में से कोई भी धातु नहीं है। शरीर , मन , बुद्धि और इन्द्रियां आदि सबसे पृथक हूँ। मैं इस पिंजरे में कैद हो गया हूँ। उसे सुख - दुःख आदि भी होते हैं। कभी शोक- मोह भी सताते हैं। शरीर शिथिल और बूढ़ा हो जाता है। पर वह यह जान लेता है कि ये सब मेरे धर्म नहीं हैं। शोक- मोह मन के धर्म हैं। भूख- प्यास प्राण के धर्म हैं। जन्म- मृत्यु और बुढ़ापा ये सब शरीर के धर्म हैं। मैं इन सब से अलग आत्मा हूँ । शरीर, इन्द्रियां आदि आत्मा से चिपक गयें हैं। उन्होंने आत्मा को सीमा में बांध दिया है। मैंने साधना की , अभ्यास किया , श्रुति के वचनों का पालन किया तो मन और बुद्धि सब निर्मल हो गये। बस अब शरीर का टूटना बाकी है। शरीर के टूटते ही मैं केवली अर्थात केवल अकेला हो जाऊंगा।

कबीर की उक्ति है-- ' फूटा कुम्भ जल जल ही में समाना ' उसी प्रकार जीवात्मा रूपी घट फूटता है तो घट का संपूर्ण जल नदी के जल में समाहित हो जाता है। फिर घड़े और नदी के पानी में कोई अंतर नहीं रह पाता। एक मिट्टी की पतली -सी परत घड़े के पानी को नदी के पानी से अलग कर देती है। जैसे घड़े का पानी और नदी का पानी मिलकर एक हो जाता है, वैसे ही शरीर रूपी घट के टूटते ही आत्मा- परमात्मा मिलकर एक हो जाते हैं। एक तो पहले से ही था पर भ्रान्ति के कारण अपने को पृथक-पृथक दो समझने लगते हैं। बीच में मिट्टी की परत आ गयी थी। योगाभ्यास करने का बहुत बड़ा लाभ हुवा , मिट्टी की परत टूट गयी जन्म- जन्मान्तर से मन पर लगी हुई कालिमा साफ़ हो गयी। जैसे ग्रहण हटने पर सूर्य प्रकाशित हो जाता है , वैसे ही आत्मा प्रकाशवान हो जाता है। अब न दुःख है , न संताप है , न अज्ञान है , न मृत्यु है; नासमझी से ये जीव को सदैव पीड़ित करते रहते हैं। साथ ही काम , क्रोध और मोह का यह त्रिशूल जीव को अत्यधिक वेदना देता रहता है। यदि यह त्रिशूल निकल जाये तो जीव को निर्वाण प्राप्त हो जाता है। निर्वाण के सम्बन्ध में गीता में कहा गया है ---" लभन्ते ब्रह्म निर्वाणं ऋषय: क्षीण कल्मषा:। छिन्न- द्वैधा यतात्मान: सर्वभूतहितेरता:॥ "%%%%%%%%


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