गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

मनुष्य में चन्दन जैसे गुण होने चाहिएं

सद-गुणों के विकास का उचित मार्ग यह है कि उन्हीं के सम्बन्ध में विशेष रूप से विचार किया करें  


मनुष्य के पास सबसे बड़ी पूंजी सद -गुणों की है। जिसके पास जितने सद-गुण हैं , वह उतना ही धनी है। सद-गुणों की पूंजी से किसी भी दिशा में अभीष्ट प्रगति की जा सकती है। जिसके सद-गुणों की पूंजी भरी पड़ी है , आत्म-बल और आत्म-विश्वास उसे दैवी सहायता की तरह सदा प्रगति का मार्ग दिखाते हैं। दूसरों को प्रभावित करने और अपनी सफलता का प्रधान कारण तो अपने सद-गुण ही होते हैं। सद-गुणों के विकास का उचित मार्ग यह है कि उन्हीं के सम्बन्ध में विशेष रूप से विचार किया करें, वैसा ही पढ़ें, वैसा ही सुनें, वैसा ही कहें, वैसा ही सोंचें जो सद-गुणों को बढ़ाने में , सत्प्रवृत्तियों को ऊंचा उठाने में सहायक हों। सद-गुणों के अपनाने से अपने उत्थान और आनन्द का मार्ग कितना प्रशस्त हो सकता है, इसका चिन्तन और मनन करना चाहिए।


अपने अंदर सद्गुणों के जितने बीजांकुर दिखाई पड़ें , जो अच्छाईयाँ और सत्प्रवृत्तियाँ दिखाई दें , उन्हें खोजता रहना चाहिए। जो मिलें उन पर प्रसन्न होना चाहिए। सद-गुण यदि थोड़ी मात्रा में भी अपने अंदर मौजूद हैं तो भविष्य में उनका विकास होने पर अपना भाग्य और भविष्य बहुत उज्ज्जव्ल होने की कोशिश सहज ही की जा सकती है। संसार में कोई विभूति ऐसी नहीं है जो तीव्र आकांक्षा और प्रबल पुरुषार्थ के आधार पर प्राप्त न की जा सकती हो।

एक राजा को एक दिन स्वप्न में एक साधू ने बताया कि कल रात को एक विषैले सर्प के काटने से तेरी मृत्यु हो जाएगी। वह सर्प तुम्हारा पूर्व जन्म का शत्रु है और अमुक पेड़ की जड़ में रहता है। प्रात:काल राजा सोकर उठा। विचार करने लगा कि आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए ? राजा को विश्वास था कि उसका स्वप्न सच्चा है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार का निश्चय किया। संध्या होते ही पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शैया तक फूलों का बिछोना बिछवा दिया, मीठे दूध के कटोरे जगह-जगह रखवा दी और सेवकों से कह दिया कि सर्प आए तो कोई उसे किसी प्रकार का कष्ट न दे। रात्रि के समय सर्प जैसे -जैसे राजा के महल कि तरफ बढ़ता गया , उसका क्रोध कम होता गया। भलमनसाहत और सद्व्यवहार ऐसे प्रबल अस्त्र हैं , जिनसे बुरे से बुरे स्वभाव के दुष्ट मनुष्यों को भी परास्त होना पड़ता है। 


लोग गुणों की पूजा करते हैं, व्यक्ति की नहीं। सच्चाई को सिर झुकाते हैं , बनावटीपन को नहीं। टेसू का फूल देखने में बड़ा आकर्षक होता है, किन्तु लोग गुलाब की सुवास को ही अधिक पसंद करते हैं। हम में यदि सद-गुणों का विकास होगा तो आप अवश्य ही प्रशंसा के पात्र होंगे। हमारा कोई एक गुण सामान्य श्रेणी के व्यक्तियों से जितना अधिक होगा , उतना ही हमें अधिक यश मिलेगा। गुण देखें , गुणों की चर्चा करें , गुणवानों को प्रोत्साहित करें तो अपना यह स्वभाव दूसरों के लिए ही नहीं अपितु अपने लिए भी परम मंगलमय सिद्ध हो सकता है।

सुकरात बहुत ही कुरूप थे , फिर भी वे सदा दर्पण पास रखते थे और बार-बार मुंह देखते थे। एक मित्र ने कारण पूछा , तो उन्होंने कहा कि , " सोचता हूँ , इस कुरूपता का प्रतिकार मुझे अधिक अच्छे कार्यों से सुन्दरता बढ़ाकर करना चाहिए। इसी बात को याद रखने में दर्पण से सहायता मिलती है। " दूसरी और एक बात सुकरात ने कही , " जो सुंदर हैं, उन्हें भी बार-बार दर्पण देखना चाहिए और सीखना चाहिए कि ईश्वर प्रदत्त सौन्दर्य पर कहीं दुष्प्रवृत्तियों के कारण दाग-धब्बा न लग जाए। " इनका मत था -- " मनुष्य में चन्दन जैसे गुण होने चाहिएं, सुडौल हो या बेडौल , बिखेरें सुगंध ही।" वस्तुत: सुगंध एवं सद्गुण ही जीवन की प्रगति एवं प्रस्तुति के परिचायक हैं।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&


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