चतुर्विध- मन मूल के साथ ,चित्त, अहंकार एवं बुद्धि के रूप में शरीर के अंदर रहने वाला एक विषिस्ट उपकरण
मन में अनेक विकारों का जन्म होता रहता है । ये विकार ही मन को उद्वेलित करते रहते हैं। मन को वश में कैसे किया जाए ,यह एक गम्भीर समस्या है। मन है तो एक , पर क्रिया- भेद से उसे विभिन्न रूपों में जाना जाता है । जब मनन करता है, तो वह मन कहलाता है। पर मन जब चिंतन करता है;तो वह चित्त कहलाता है। जब मेरा-मेरा कर अभिमान करता है। तो वह अहंकार हो जाता है। जब किसी वस्तु का निश्चय करता है तो वह बुद्धि बन जाता है। इस प्रकार मन चार रूपों को धारण कर लेता है । मन चतुर्विध- मन मूल के साथ ,चित्त, अहंकार एवं बुद्धि के रूप में शरीर के अंदर रहने वाला एक विषिस्ट उपकरण है। इसीलिए इसे अंत:करण भी कहा गया है। एक साथ अनेक पदार्थों का ज्ञान न करके एक छण में एक ही विषय का ज्ञान करना यह मन का लक्षण है। अर्थात मन एक ही समय और एक छण में किसी एक पदार्थ का ही ज्ञान करा पाता है । मन बहुत जल्दी बदलता रहता है। इसमें अनेक विचार और तरंगें उत्पन्न होती रहतीं हैं । ऊपर से इस प्रकार प्रतीत होता है क़ि मन बहुत शांत है , पर अंदर से मन बहुत दौड़ता है । शरीर से तुलना नहीं की जासकती । मन की एकाग्रता आवश्यक है ।मन में अनेक विकारों का जन्म होता रहता है । ये विकार ही मन को उद्वेलित करते रहते हैं। मन को वश में कैसे किया जाए ,यह एक गम्भीर समस्या है। मन है तो एक , पर क्रिया- भेद से उसे विभिन्न रूपों में जाना जाता है ।
मन में अनेक विकारों का जन्म होता रहता है । ये विकार ही मन को उद्वेलित करते रहते हैं। मन को वश में कैसे किया जाए ,यह एक गम्भीर समस्या है। मन है तो एक , पर क्रिया- भेद से उसे विभिन्न रूपों में जाना जाता है । जब मनन करता है, तो वह मन कहलाता है। पर मन जब चिंतन करता है;तो वह चित्त कहलाता है। जब मेरा-मेरा कर अभिमान करता है। तो वह अहंकार हो जाता है। जब किसी वस्तु का निश्चय करता है तो वह बुद्धि बन जाता है। इस प्रकार मन चार रूपों को धारण कर लेता है । मन चतुर्विध- मन मूल के साथ ,चित्त, अहंकार एवं बुद्धि के रूप में शरीर के अंदर रहने वाला एक विषिस्ट उपकरण है। इसीलिए इसे अंत:करण भी कहा गया है। एक साथ अनेक पदार्थों का ज्ञान न करके एक छण में एक ही विषय का ज्ञान करना यह मन का लक्षण है। अर्थात मन एक ही समय और एक छण में किसी एक पदार्थ का ही ज्ञान करा पाता है । मन बहुत जल्दी बदलता रहता है। इसमें अनेक विचार और तरंगें उत्पन्न होती रहतीं हैं । ऊपर से इस प्रकार प्रतीत होता है क़ि मन बहुत शांत है , पर अंदर से मन बहुत दौड़ता है । शरीर से तुलना नहीं की जासकती । मन की एकाग्रता आवश्यक है ।मन में अनेक विकारों का जन्म होता रहता है । ये विकार ही मन को उद्वेलित करते रहते हैं। मन को वश में कैसे किया जाए ,यह एक गम्भीर समस्या है। मन है तो एक , पर क्रिया- भेद से उसे विभिन्न रूपों में जाना जाता है ।
जब मनन करता है, तो वह मन कहलाता है। पर मन जब चिंतन करता है;तो वह चित्त कहलाता है। जब मेरा-मेरा कर अभिमान करता है। तो वह अहंकार हो जाता है। जब किसी वस्तु का निश्चय करता है तो वह बुद्धि बन जाता है। इस प्रकार मन चार रूपों को धारण कर लेता है । मन चतुर्विध- मन मूल के साथ ,चित्त, अहंकार एवं बुद्धि के रूप में शरीर के अंदर रहने वाला एक विषिस्ट उपकरण है। इसीलिए इसे अंत:करण भी कहा गया है। एक साथ अनेक पदार्थों का ज्ञान न करके एक छण में एक ही विषय का ज्ञान करना यह मन का लक्षण है। अर्थात मन एक ही समय और एक छण में किसी एक पदार्थ का ही ज्ञान करा पाता है । मन बहुत जल्दी बदलता रहता है। इसमें अनेक विचार और तरंगें उत्पन्न होती रहतीं हैं । ऊपर से इस प्रकार प्रतीत होता है क़ि मन बहुत शांत है , पर अंदर से मन बहुत दौड़ता है । शरीर से तुलना नहीं की जासकती । मन की एकाग्रता आवश्यक है ।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
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