सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

मक्खन को नवनीत

भला परमात्मा से अधिक और नया क्या हो सकता है ?



मक्खन आख़िरकार क्या होता है । मक्खन एक प्रक्रिया है । इसे प्राप्त करने के लिए पात्र के साथ -साथ दही, मथानी की भी आवश्यकता होती है । जहाँ पात्र का स्थिर होना आवश्यक है ,वहां दही का होना भी आवश्यक है । पात्र स्थिर नहीं होगा तो दही जम ही नहीं सकती। दही से मक्खन प्राप्त करने के लिए मथने की आवश्यकता पड़ती है ,बिना मथे मक्खन प्राप्त नहीं किया जा सकता ।



 उसी प्रकार अध्यात्म रूपी मक्खन प्राप्त करने के लिए ;परमात्मा के सत्य -स्वरूप को ,चित स्वरूप को एवं आनंद स्वरूप को प्राप्त करने के लिए पात्र रूपी शरीर को भी स्थिर करना होगा। स्थिरता ही गति प्रदान करती है,स्थिरता से ही आगे बढ़ा जा सकता है। दही ज्ञान एवं विचार की श्रंखला है। विचार मन रूपी बुद्धि की ही चेतना है। शरीर रूपी पात्र में जब विचारों का आवेग एवं प्रवाह होता है। तब चेतन रूपी आत्मा मथानी का कार्य करती है। 




परिणाम -स्वरूप परमात्मा रूपी मक्खन प्राप्त होता है। इस मक्खन को नवनीत भी कहते हैं। नवनीत का अर्थ ही सबसे अधिक नया है ;भला परमात्मा से अधिक और नया क्या हो सकता है ?अन्य सब वस्तुएं तो पुरानी हो जाती हैं । केवल वही नवनीत है तथा वही कैवल्य है। इसी को परम आनन्द एवं मक्खन कहा जा सकता है।^^^^^^^^^^^^^^^^^^&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&

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