गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

स्वयं का अध्याय स्वाध्याय

स्वाध्याय का अर्थ है -- अपने गुण - दोषों का विचार करना 




स्वयं का अध्याय स्वाध्याय है। अध्याय का अर्थ है आत्म -ज्ञान प्राप्त करना, अपनी सत्ता की एवं अपने अस्तित्व की प्राप्त करना ही स्वाध्याय है। आत्मा, परमात्मा , ब्रह्म या परम का स्वरूप जानने के लिए अध्ययन करना । अपने चेहरे को ठीक से पहचानना दर्पण के सामने खड़े होकर चेहरा देखा जाता है , चेहरा और दर्पण दोनों उनके अपने हैं, पर दर्पण में जो चेहरा देखा जाता है वह नकली है। क्योंकि परिवर्तनशील होने के कारण चेहरा सदैव बदलता रहता है। चहरे में परिवर्तन स्वाभाविक है।



 अथवा स्वाध्याय का अर्थ है -- अपने गुण - दोषों का विचार करना ऐसे गुण जिनके कारण समाज हमारा आदर करता है तथा ऐसे कौन से हम में हैं जिनके कारण समाज हमारा निरादर करता है। इस प्रकार अपने गुण- दोषों का भली- भांति अध्ययन करते रहना चाहिए। इसे ही मूल स्वाध्याय की वृत्ति मानना चाहिए। दोष देखने हों तो अपने देखने चाहिएं , गुण देखने हों तो दूसरे के देखने चाहिएं। मन का यह स्वभाव है कि वह जिस वस्तु का अधिक चिंतन करता है, वह उसी के आकार का हो जाता है। यदि दूसरों के दोषों का ध्यान करेंगे तो वे दोष आपके मन में प्रवेश कर जायेंगे। यदि गुणों का ध्यान करेंगे तो गुण आप में आ जायेंगे।



" स्वाध्यायो अधेतव्य:", " स्वध्यायान्मा प्रमद: " आदि वेद वचनों के अनुसार सद्ग्रंथों का अध्ययन करना ही स्वाध्याय है। आप ऐसे ग्रंथों का अध्ययन करें , जो आपके मस्तिषक एवं मन का विकास कर सके। जिन्होंने उत्तम ग्रंथों का अध्ययन किया , वे यशस्वी और मनस्वी महापुरुषों के रूप ही विकसित हुवे।pppppppppp




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