गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

स्वयं जीओ और दूसरे को भी जीने दो

यम का अर्थ है आंतरिक अनुशासन 



अहिंसा , सत्य , अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन्हें यम कहा गया है--- " अहिंसासत्यास्तेय ब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमा:"। यम का अर्थ है आंतरिक अनुशासन , यदि जीवन में अनुशासन का पालन नहीं होगा तो निश्चित रूप से शीघ्र ही मृत्यु का वरण करना होगा। अनुशासन में रहिये और इन पांच यमों का पालन कीजिए। समग्रता में जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए ताकि इतने निपुण हो सकें कि मृत्यु के भय को जीत कर अमरत्व की ओर गतिशील हो सकें। यम में सर्वप्रथम अहिंसा है। अहिंसा का अर्थ है मन, वचन , कर्म से दूसरे प्राणियों को न सताना। अहिंसा मानव सभ्यता का अंतिम शिखर है। अहिंसक व्यक्ति संसार में सर्व- श्रेष्ठ माना जाता है। श्रुति के अनुसार -- " मा हिंस्यात सर्वा भूतानि " किसी भी प्राणी की हिंसा मत करो। अहिंसा को परम धर्म -- " अहिंसा परमो धर्म: " कहा गया है। यदि हम किसी प्राणी को जीवन नहीं दे सकते , तो उन्हें मारने का भी हमें अधिकार नहीं है। स्वयं जीओ और दूसरे को भी जीने दो के सिद्धांत का अनुसरण करना चाहिए।

अहिंसा का हिन्दू संस्कृति से विशेष सम्बन्ध है। हिन्दू शब्द की व्युत्पत्ति है-- " हिंसया दूयते इति हिन्दू " अर्थात हिसा सी जिस का मन दुखी हो जाये , जो हिंसा करना नहीं चाहता वह हिन्दू है। इस प्रकार जो व्यक्ति मन वाणी तथा शरीर से किसी भी प्रकार से किसी भी प्राणी को कष्ट नहीं पहुंचाता वह हिन्दू है। अहिंसा - वृत्ति के स्थिर होने के लाभ के विषय में योग - दर्शन में कहा गया है-- " अहिंसा प्रतिष्ठितायाम तत सन्निधौ वैरत्याग: " । अहिंसा - वृत्ति के स्थिर होने पर योगी के पास रहने वाले शेर आदि हिंसक प्राणी भी वैर-विरोध को छोड़ देते हैं। अत: अहिंसा-वृत्ति के जागने पर योगी का मन सात्विक हो जाता है। सात्विक मन की तरंगें चारों ओर फैलती हैं। वातावरण शांत हो जाता है। इसलिए हिंसक जीवों के मन भी सात्विक हो जाते हैं , सात्विक प्राणी में वैर का अवकाश नहीं।

आततायी को मारने में कोई दोष नहीं है , तब हिन्दू का अर्थ होगा-- हिनस्ति दुष्टमिति हिन्दू " । धर्म-शास्त्र की व्यवस्था है -- " आततायिनमायान्तम हन्यादेवाविचारयन " अर्थात आततायी को बिना किसी विचार के मार डालना चाहिए। इस सम्बन्ध में एक लोकोक्ति भी है-- ' जो तोको कांटा बुवे तू बोए ताहि को भाला। वो भी साला क्या जाने कि पड़ा किसी से पाला ॥ ' आग लगाने वाला , विष खिलाने वाला , मारने के उद्देश्य से शस्त्र हाथ में लेकर आने वाला , दूसरे के धन का अपहरण करने वाला , दूसरे की जमीन पर कब्जा करने वाला तथा परायी स्त्री का अपहरण करने वाला ; ये छ: महापाप करने वाले आततायी होते हैं। इनकी हिंसा करने से पाप नहीं लगता। ऐसी विशेष परिस्थिति में हिंसा ही धर्म है , क्योंकि आप पापी का अंत करने जा रहे हैं। 

अहिंसा का अर्थ कायरता कभी भी नहीं होना चाहिए ; दया भाव से ही अहिंसा उत्तम है। तथा वही मानव का सहज ही धर्म है , इससे मन सात्विक होकर निर्मल होता है। अत: यम में अहिंसा को प्रथम स्थान दिया गया है।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&



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