रविवार, 6 अक्तूबर 2013

पत्नी परिवार को बांधने वाली डोर

मोक्ष पर्यंत पत्नी ही साथ 




परिवार के विघटक तत्त्व इस प्रकार हैं -- परस्पर विरोधी स्वभाव एवं जीवन - दर्शन , तनाव , व्यक्तिगत गया प्रतिमान , मनोविकार आदि । ये सभी तत्त्व विघटन का कारण बनते हैं। इन कारणों को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है ______आर्थिक तनाव , व्यावसायिक तनाव , सांस्कृतिक एवं सामाजिक असमानता , आयु में अंतर , अस्वस्थता , संतान के प्रति दृष्टिकोण , ससुराल के सम्बन्धियों द्वारा हस्तक्षेप आदि। परिवारिक विघटन के बाद सामाजिक विघटन स्वाभाविक रूप से होता है।





 वैदिक धारणाओं के अनुसार घर में पत्नी के रूप में जो सम्राज्ञी आती थी , वह घर में शासन निर्विरोध रूप में किया करती थी । ' फ्रीनोलोजी ' वालों का कहना कि मस्तिष्क में ज्ञान , मान , अर्थ , काम , आयु , विज्ञानं और नये- धर्म के सात स्थान हैं। वैदिक ऋषियों द्वारा पूर्व में ही ऐसा संकेत दे दिया था। -- ' आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्तिं द्रविणं ब्रह्मवर्चसं मह्यं दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकं ' अर्थात आयु , बल , प्रजा , पशु , कीर्ति , धन और तत्त्व-ज्ञान एवं मोक्ष आदि आर्यों के मस्तिष्क में ये प्रधान स्थान थे। गृहस्थ जीवन इसीलिए प्रिय माना गया है कि प्रधान रूप से उनके मस्तिष्क में जो कामनाएं थीं उनको आहार और उनका लालन- पालन गृहस्थाश्रम में ही होता था तथा पत्नी प्रमुख रूप से इन कामनाओं की पूर्ति में योगदान देती थी। पुत्र,भाई , मित्र या अन्य सम्बन्धी की अपेक्षा सबसे अधिक सहारा पत्नी से ही मिलता था।


 गृहस्थाश्रम में पूर्ण रूप से तथा मोक्ष पर्यंत पत्नी ही साथ रहती है। ऐसे देव- तुल्य दम्पति की कल्पना ऋषियों ने की है , जो प्रार्थना करते हुवे कहते हैं कि संसार की सभी शक्तियां और विद्वान् उन पति - पत्नी को अच्छी तरह जानें , उन दोनों के ह्रदय जल के समान शांत हों और उन दोनों की प्राण - शक्ति , धारणा- शक्ति और उपदेश - शक्ति परस्पर कल्याणकारी हों । इसी कारण ऐतरेय ब्राह्मण में पत्नी को 'सखा  जाया ' कहा गया है । वैदिक साहित्य में पत्नी को श्रेष्ठ स्थान दिया गया है, स्त्री का माता-पिता और देवी- देवता के रूप में प्रथम स्थान प्राप्त है । स्त्री की घर में पूजा गृहलक्ष्मी के रूप में और समाज में शक्ति के रूप में होती है ।

 कहीं पत्नी , कहीं माता , कहीं बहन , कहीं कन्या के नाम से इस नारी शक्ति की पूजा होती रही और परिवार को विघटनकारी तत्त्वों से बचाए रखा । स्त्री को गृहस्थी के अतिरिक्त समाज के विभिन्न वर्गों में उचित प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया । वें वेदों का अध्ययन कर आचार्य पद पर भी प्रतिष्ठित होतीं थीं  परिवार को तोड़ने और बिखेरने वाले जो तत्त्व उभरते रहते हैं उनको दबा कर रखना गृहिणी का ही काम है। 


परिवार को आदर्श परिवार बनाना भी गृहिणी का ही कर्त्तव्य है। जब वधू को घर में आती है तो उसका व्यवहार कैसा रहना चाहिए और उस व्यवहार के कारण वह घर की सम्राज्ञी हो जाये -- ' जाया पत्ये मधुमतीं  वाचं वदतु शन्तिवाम॥ ' अर्थात पत्नी अपने पति से मीठा और शांत वचन बोले। आपस में सब मिलजुल कर एक ही उत्तम कार्य को करें , प्रेम - पूर्वक व्यवहार करते हुवे तथा प्रिय वचन बोला करें। वचन का अत्यधिक महत्त्व है सभी को कल्याण- प्रद वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए --' मधुमती ऋग्वेद के भाषा सूक्त में'मधुमती वाच्मुदेयाँ' मंगलमयी वाणी में लक्ष्मी का निवास बताया गया है । यजुर्वेद में -- ' भद्रं कर्णेभिश्रृणुयाम:' अर्थात हम कानों से भद्र - अच्छा ही सुनें। 

अथर्वेद के अनुसार -- पुत्र पिता का आज्ञाकारी हो, माता का इच्छाकारी हो, पत्नी पति के साथ मधुर और शांत वाणी से बोले। भाई का भाई से दुराव - द्वेष न हो , न बहन से बहन ईर्ष्या करे। सभी अपने- अपने व्रत और अपनी - अपनी मर्यादा में रह कर एक दूसरे के साथ सम्यक वाणी का प्रयोग करें।

 परिवार और समाज के लिए सात मर्यादा निर्धरित की गयीं हैं। ऋग्वेद के अनुसार ये मर्यादाएं निम्न हैं-- हिंसा , चोरी , व्यभिचार , मद्यपान , द्यूत , असत्य- भाषण और इन पापियों का संग । इन में से जो एक भी मर्यादा का उल्लंघन करता है वह पापी ही होता है। पत्नी परिवार को बांधने वाली डोर है।

 वह ही जागरूकता से परिवार का कल्याण कर सकती है तथा सारे विघटनकारी तत्त्वों का भी नाश कर सकती है। यदि ऐसा परिवार हो जाए तो अलग से मोक्ष के लिए कुछ करने  की आवश्यकता नहीं है। यही जीवन और परिवार का वैदिक आदर्श है ।%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें