बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

आहार, निद्रा, भय और मैथुन का सम्यक पालन

मानव- जीवन का उद्देश्य आत्म- साक्षात्कार है 



वैदिक- कल्पतरु के रूप में हम जो भी ज्ञान-प्राप्त करने की कामना करें, वेदों से उसे प्राप्त कर सकते हैं। वेद का अर्थ ज्ञान है। यह इतना परिपूर्ण है कि चाहे हम इस भौतिक जगत या आध्यात्मिक जगत का आनंद प्राप्त करने की इच्छा करते हों , दोनों प्रकार का ज्ञान यहाँ उपलब्ध है। यदि हम वैदिक सिद्धांतों का पालन करें तो हम सुखी हो सकते हैं। वे राज्य की आचार- संहिताओं की तरह हैं। यदि नागरिक इनका पालन करें तो वे सुखी हो जायेंगे राज्य हमें कष्ट देने के लिए नहीं है, परन्तु हम यदि राज्यों का नियमों का पालन करें तो दुःख का कोई प्रश्न ही नहीं रहेगा। इसी प्रकार यह बद्ध- जीव प्राणी , यहाँ इस भौतिक जगत में आनंद और भौतिक सुख के लिए आया है तथा वाद हमारे पथ- प्रदर्शक हैं। ठीक है आनंद कीजिए , परन्तु हमें आनंद इन्हीं वैदिक सिद्धांतों के आधार पर ही करना होगा। इसी को वेद कहते हैं। इसीलिए यहाँ सबकुछ उपलब्ध है।



वेदों में विवाह पद्धति का का उल्लेख मिलता है। विवाह - पद्धति के अनुसार स्त्री- पुरुषों के साथ रहने एवं उनके यौन- जीवन का वर्णन है। उन्हीं नियमों के अनुसार ही व्यक्ति सुखी हो सकता है। अंतिम उद्देश्य सुखी होना है। आहार, निद्रा, भय और मैथुन का सम्यक पालन आवश्यक है। इन नियमों का पालन करते हुवे ही सुख की सच्ची स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। यह एक भ्रान्ति है कि भौतिक जीवन जीवात्मा के लिए नहों है। यदि हम भौतिक जीवन का उपभोग करना चाहते हैं तो ठीक है, पर यह अंतिम परिणति नहीं है। अन्ततोगत्वा हम यह समझ लें कि यह जीवन हमारे लिए उचित नहीं है। हमारे लिए आध्यात्मिक जीवन ही उचित है।


 ज्यों ही हम , मैं ब्रह्म हूँ , इस आध्यात्मिक स्थिति को जान लेते हैं उसके उपरांत ही हमारा मानव जीवन पूर्ण होता है। अन्यथा हम अपने आध्यात्मिक जीवन की चिंता नहीं करेंगे तो परिणाम यह होगा कि हमारा जीवन पशु के समान ही हो जाएगा। यह सम्भावना है कि अगले जन्म में हम पशु- योनि को ही प्राप्त करें और हमने पशु- योनि को प्राप्त कर लिया तो इस मानव - जीवन को प्राप्त करने के लिए लाखों- करोड़ों वर्ष लग जाएगें। इसलिए मानव- जीवन का उद्देश्य आत्म- साक्षात्कार है। तथा वेद इस सन्दर्भ में पथ- प्रदर्शक हैं।

 वेदों को चार भागों में विभाजित किया गया है --- ऋक, साम, अथर्व और यजु:। फिर १०८ उपनिषदों में इस ज्ञान की विषद व्याख्या कि गयी है। साथ ही वेदांत सूत्रों में भी इस ज्ञान सार रूप में प्रस्तुत क्या गया है। श्रीमदभगवद्गीता में आध्यात्मिक ज्ञान की सागार्भित चर्चा प्राप्त होती है। मूल रूप से वेद ही इसका आधार है, वैदिक कल्पतरु इच्छादायी फल को देने वाला कहा जा सकता है।**********

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