गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

जल्दबाजी से काम बिगड़ता है।

यदि मन को साध लिया तो इन्द्रियां अपने आप रुक जाती हैंइस प्रकार प्रत्याहार से इन्द्रियां अत्यंत वश में हो जाती हैं 





अपने- अपने विषयों के संग से रहित होने पर , इन्द्रयों का चित्त के रूप से अवस्थित हो जाना ' प्रत्याहार ' है। प्रत्याहार के सिद्ध होने पर प्रत्याहार के समय साधक को बाह्य ज्ञान नहीं होता , क्योंकि व्यवहार के समय साधक को बाह्य ज्ञान रहता है। अत: व्यवहार के समय साधक शरीर - यात्रा के हेतु से प्रत्याहार को काम में नहीं लाता। अन्य किसी साधन से यदि मन का निरोध हो जाता है , तो इन्द्रियों का निरोधरूप प्रत्याहार अपने आप ही उसके अंतर्गत आजाता है--- ततपरमा वश्यते इन्द्रियानाम " । इस प्रकार प्रत्याहार से इन्द्रियां अत्यंत वश में हो जाती हैं, अर्थात इन्द्रियों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार प्रत्याहार इन्द्रियों को संसार की ओर लौटा कर, उन्हें परमात्मा की ओर उन्मुख करता है। इन्द्रियों क़ा यह स्वभाव होता है कि वे बाहर की ओर दौडती रहती हैं। शरीर के अन्दर आत्मा सदा रहता है। पर वे उसकी ओर नहीं देखती।







प्रकृति का एक नियम है , जो वस्तु जिस जाति की होती है , उसी से मिलकर वह पूर्णता का अनुभव करती है। इन्द्रियां भौतिक हैं , बाहर के पदार्थ भी भौतिक हैं , दोनों सजातीय हैं , इसलिए इन्द्रियां उन पदार्थों की ओर दौडती हैं। जिस इन्द्रिय का जो भोजन है , उसे समेट कर , अपने स्वामी मन को सौंप देती हैं। इन्द्रियां द्वार हैंउन्हीं में से होकर विषय प्रवेश करते हैं। अत: इन्द्रियों के सम्बन्ध में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। ये अपने आप कुछ नहीं करतीं , इनका स्वामी मन है, यदि मन को साध लिया तो इन्द्रियां अपने आप रुक जाती हैं मन शांत हुवा तो इन्द्रियां स्वत: शांत हो जाएँगी। साथ में बुद्धि में भी परिवर्तन लाना होगा। बुद्धि स्वामिनी है और मन उसका सेवक है। बुद्धि पारदर्शिनी होनी चाहिए। वह आत्मा के सर्वथा निकट है। अत: सूक्ष्म बुद्धि के द्वारा ही आत्मा का साक्षात्कार होगा। पहले आत्मा को सुनना पड़ेगा , फिर मनन करना पड़ेगा , फिर बुद्धि से परम- प्रकाश का ध्यान करना पड़ेगा। यदि बुद्धि ने धर्म में स्नान कर लिया तो मन इन्द्रियां , शरीर , प्राण ये सब पवित्र हो जायेंगे तथा तब कर्म भी पवित्र होगा। यदि आप परमात्मा का चिंतन करेंगे तो परमात्मा भी आपका चिंतन करेगा। आप बाहर भटक गये थे फिर स्थान पर लौट आये तो यही प्रत्याहार का फल है।


अनेक जन्मों तक सेवन करने से जिनका अभ्यास बन गया है , उन्हें हटाने के लिए जल्दी मत करो। भोजन को यदि तेज अग्नि पर पकाओगे , तो वह जल जायेगा। कर में एकाएक ब्रेक लगेगा , तो वह उलट जाएगी। दूध को यदि तेज आंच पर गर्म करोगे वह उफन जायेगा। इन सब कर्मों में धैर्य की आवश्यकता होती है। जल्दबाजी से काम बिगड़ता है। इन्द्रियां संसार से लौटें , मन परमात्मा की ओर हो जाये , उसी का मनन - चिंतन करे तो यही प्रत्याहार है। *************************




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