गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

प्राण जाएँ पर वचन न जाई

मृदु का भाव मार्दव , मान का मर्दन करने वाला एवं दया-धर्म का मूल  


मृदु का भाव मार्दव है। मार्दव धर्म संसार के क्लेशों का नाश करने वाला है। मान का मर्दन करने वाला एवं दया-धर्म का मूल है। विमल एवं सर्वजीवों का हितकारक है। गुण-गणों में सारभूत है। इस मार्दव धर्म से ही सकल व्रत और संयम सफल होते हैं। मार्दव धर्म मन के कषाय और कल्मष को दूर करता है। यह पांच इन्द्रिय और मन का निग्रह करता है । चित्तरूपी पृथ्वी के आश्रय से करुणारूपी बेल मार्दवरूपी धर्म पर फ़ैल जाती है। मार्दव धर्म जिनेन्द्र देव की भक्ति को प्रकाशित करता है। मार्दव धर्म कुमति के प्रसार को रोक देता है। इससे बहुत अधिक विनय-गुण प्रवृत्त होता है और इस धर्म से मनुष्यों का वैर दूर हो जाता है।


मार्दव सभी दोषों का निवारण करता है और यही जीवों को जन्म- सागर से पार करने वाला है। जाति आदि मदों के आवेशवश होने वाले अभिमान का अभाव करना मार्दव है। यह आठ प्रकार के मद से रहित है और चार प्रकार की विनय से संयुक्त है। इंद्र नाम का विद्याधर इंद्र के समान वैभवशाली था फिर भी रावण के द्वारा पराजय को प्राप्त हुवा है और रावण भी एक दिन मान के वश में नष्ट हो गया, अत: मान से क्या लाभ ? जाति, कुल, बल, ऐश्वर्य, रूप, तप, विद्या और धन इन आठ मदों के आश्रय से जो मान करते हैं , वे तत्काल नीच गति के कारण भूत कर्मों का संचय करते हैं। मानी पुरुष मान के वश होकर पूज्य-पूजा का व्यतिक्रम कर देते हैं। इस संसार में मान किसका करना ? जहाँ पर प्राणी राजा होकर विष्ठा में कीड़ा हो गया। विनय के चार भेद हैं --- ज्ञान, दर्शन, चरित्र और उपचार।

अत: जाति , कुल आदि के घमंड को छोड़कर मार्दव धर्म धारण करना चाहिए। मार्दव धर्म के प्रसाद से उच्च गोत्र का आस्रव होता है। श्री रामचंद्र ने अपने कुल का गर्व अर्थात मिथ्या अभिमान नहीं किया, अपितु गौरव रखा। आज भी कहते हैं कि ---" रघुकुल रीति सदा चली आई। प्राण जाएँ पर वचन न जाई॥ " 







हम मनु की सन्तान हैं --"मनु अपत्यं मानव: "। अत: हमारा कर्त्तव है कि हम मानवता को अपनाएं। जो सदैव अपने कुल , जाति और धर्म का गौरव रखते हुवे गर्व का त्याग करते हैं , वे ही अपने स्वाभिमान की रक्षा करके इस लोक में सर्वमान्य होते हैं तथा परलोक में उच्च कुल में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। उच्च जाति , गोत्र और क्रिया आदि शुक्ल ध्यान के हेतु माने गये हैं। इसलिए उच्च वर्ण अर्थात महान साधकों को मोक्ष के लिए कारण सामग्री हेतु मान कषाय और कल्मष को छोड़कर विनय का आश्रय लेकर मार्दव धर्म को हृदय में स्थान देना चाहिए।********************



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें