शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

विचारणा व्यक्ति को ही नहीं , वातावरण को भी प्रभावित

विचारों की शक्ति अपरिमित है  





विचारों की शक्ति अपरिमित है। हम संसार में जो कुछ देखते हैं , हमें जो कुछ भी दृष्टि-गोचर होता है। वह सब विचारों का ही चमत्कार है। जड़-चेतनमय जो कुछ चराचर जगत है उसको ऋषियों ने परमात्मा के विचारों का स्फुरण बताया है। विचारों के बल पर मनुष्य न केवल पशु से मनुष्य बना है। अपितु वह मनुष्य से देवता भी बन सकता है और विचार-प्रधान ऋषि, मुनि, महात्मा और संत भी मनुष्य से देवकोटि में पहुंचे हैं और पहुंचते रहेंगे। विचार एक शक्ति है, विशुद्ध विद्युत्-शक्ति। जो इस पर समुचित नियन्त्रण कर ठीक दिशा में संचालन कर सकता है, वह बिजली की भांति इससे बड़े-बड़े काम ले सकता है। किन्तु जो ठीक से इसको अनुशासित नहीं कर सकता, वह उल्टा उसका शिकार बन जाता है। वह अपनी शक्ति से स्वयं ही नष्ट हो जाता है, अपनी ही आग में जलकर स्वयं भस्म हो जाता है। इसीलिए मनीषियों ने नियंत्रित विचारों को मनुष्य का मित्र और अनियंत्रित विचारों को उसका शत्रु बतलाया है। एकाग्रता पूर्वक तीव्र इच्छाशक्ति के साथ किए गये विचारों की शक्ति आचरण से जुड जाने पर प्रभावपूर्ण हो ही जाती है।


विश्व के समस्त परिवर्तनों के मूल कारण विचार ही हैं, प्रत्येक विचार उस नन्हें बीज के समान हैं, जिसमें एक महान वृक्ष उत्पन्न करने की शक्ति छीपी है। अध्यात्मशास्त्र का अटल एवं अनुभवसिद्ध सिद्धांत है कि मनुष्य के जैसे विचार होते हैं , जैसा वह नित्यप्रति के जीवन में सोचता, विचारता और ध्यान करता है वैसा ही उसका भाग्य तथा फल निर्मित होता है। हमें अपने विचारों को जागृत करते हुवे उन्हें सदैव परिष्कृत करते रहना चाहिए। जीवन के हर क्षेत्र में पुरस्कृत होकर देव-तुल्य ही जीवन व्यतीत करने में प्रयास रत रहें। विचारों की पवित्रता से ही मनुष्य का जीवन उज्ज्वल एवं उन्नत बनता है।


विचार ही कार्य की प्रेरक शक्ति है। मनुष्य जैसा बनना चाहता है, वह वैसे ही विचार करना प्रारम्भ करे। धीरे-धीरे वह देखेगा कि उसके विचार ही कार्य-रूप धारण करते जा रहे हैं। अध्यात्मशास्त्र तो यह बतलाता ही है कि सूक्ष्म से स्थूल बनता है। प्रारम्भ में जो वस्तु सूक्ष्म थी वही आज स्थूल रूप धारण करके स्थूल बनी है। सारा चराचर जगत इसी विचार-शक्ति के आधार पर चल रहा है। घड़े का निर्माण करने के पूर्व उस कुम्हार के मानसपटल में घड़े का पूरा-पूरा स्वरूप आ जाता है। जब उसका विचार दृढ़ हो जाता है तभी वह घड़ा सूक्ष्म से स्थूल रूप धारण करके संसार के समक्ष आता है। विचारों के उचित उपयोग से ही मनुष्य विश्वविजयी बन सकता है। सहस्रों आविष्कारों , जो अब हमारे जीवन का अहं हिस्सा हैं वे सभी विचारों का ही परिणाम हैं। अपने विचारों के बल से ही मनुष्य ने प्राकृतिक शक्तियों पर प्रभुत्व पाया है।


यद्यपि विचार और चिन्तन की क्रियाएँ दिखाई नहीं देतीं , वे अदृश्य ही रहती हैं। किन्तु मनुष्य जितने भी कर्म करता है उन सबकी जड़ें होती इसी क्षेत्र में हैं। दिखाई देने वाले सभी क्रिया-कलाप इस अदृश्य प्रक्रिया के फलस्वरूप ही आकार धारण करने में समर्थ होते हैं। दैनिक कार्य-पद्धति में भी गुण-दोष देखने , हानि-लाभ परखने और परिवर्धन की व्यवस्था करने वाली विचार-प्रक्रिया को सजग रख कर ही चलना पड़ता है, अन्यथा चलते हुवे क्रिया-कलाप का सामान्य स्तर भी गिरने लगता है। विचार आंतरिक प्रकृति ही नहीं , बाह्य आकृति को भी प्रभावित करते हैं। प्राणियों के स्वभाव एवं बाह्य स्वरूप के निर्माण में मन:शक्ति का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। उनके शरीरिक अवयवों का उत्पन्न होना अथवा किसी अंग का क्रमश: लुप्त होना मन:शक्ति पर ही अवलम्बित है।

ऋषियों ने इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को जानते हुवे मन को सर्वदा पवित्र एवं शांत बनाए रखने तथा उसके अनुरूप आचरण करने की प्रेरणा दी है। विचारणा व्यक्ति को ही नहीं , वातावरण को भी प्रभावित करती है। इस तथ्य को समझते हुवे सद-विचारणा को ही जीवन में स्थान देना श्रेयस्कर है।&&&&&&&&&&&&&&




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