शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

श्वास और प्रश्वास की गति के अवरोध का नाम प्राणायाम

आसन के सिद्ध हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति के अवरोध हो जाने का नाम प्राणायाम  



आसन के सिद्ध हो जाने पर श्वास और प्रश्वास की गति के अवरोध हो जाने का नाम प्राणायाम है। बाहरी वायु का भीतर प्रवेश करना श्वास है और भीतरी वायु का बाहर निकलना प्रश्वास है। इन दोनों के रुकने का नाम ही प्राणायाम है-- " तस्मिन् सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद: प्राणायाम: "। देश , काल और संख्या अर्थात मात्रा के सम्बन्ध से बाह्य , आभ्यंतर और स्तम्भवृत्ति वाले , वे तीनों प्राणायाम दीर्घ और सूक्ष्म होते हैं। भीतर के श्वास को बाहर निकाल कर बाहर ही रोक रखना बाह्य कुम्भक ' कहलाता है। इसकी विधि यह है -- आठ प्रणव ( ॐ ) से रेचक करके , सोलह से बाह्य कुम्भक करना और फिर चार से पूरक करना , इस प्रकार से रेचक - पूरक के सहित बाहर कुम्भक करने का नाम बाह्य- वृत्ति प्राणायाम है।


बाहर के श्वास को भीतर खींच कर भीतर रोकने को आभ्यंतर कुम्भक ' कहते हैं। इसकी विधि यह है कि चार प्रणव से पूरक कर के सोलह से आभ्यंतर कुम्भक करे , फिर आठ से रेचक करे। इस प्रकार पूरक- रेचक के सहित भीतर कुम्भक करने का नाम आभ्यंतर - वृत्ति प्राणायाम है। बाहर या भीतर जहाँ कहीं भी सुख-पूर्वक प्राणों के रोकने का नाम स्तंभवृत्ति प्राणायाम है। इसे चार प्रणव से पूरक करके आठ से रेचक करे ; इस प्रकार पूरक- रेचक करते - करते सुखपूर्वक जहाँ कहीं भी प्राणों के रोकने का नाम स्तम्भ- वृत्ति प्राणायाम है।

प्राण वायु का नाभिह्रदय , कंठ या नासिका के भीतर के भाग तक का नाम ' आभ्यंतर ' देश है। और नासिका पुट से वायु का बाहर सोलह अंगुल तक ' बाहरी ' देश है। प्राणायाम में संख्या और काल का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण , इनके नियम में व्यतिक्रम नहीं होना चाहिए। मंत्र की गणना का नाम ' संख्या या मात्रा है , उसमें लगने वाले समय का नाम ' काल ' है। काल और मात्रा की अधिकता एवं न्यूनता से भी प्राणायाम दीर्घ और सूक्ष्म होता है। बाह्य और भीतर के विषयों के त्यागने से होने वाला जो केवल ' कुम्भक होता है , उसका नाम चतुर्थ प्राणायाम है।


शब्द - स्पर्श आदि जो इन्द्रियों के बाहरी विषय हैं और सकल्प- विकल्प आदि जो अंत:करण के विषय हैं; उनके त्याग और उनकी उपेक्षा करने पर अर्थात विषयों का चिंतन न करने पर प्राणों की गति का जो स्वत: ही अवरोध होता है, उसका नाम ' चतुर्थ प्राणायाम ' है। जहाँ प्राणों के निरोध से मन का संयम है, वहां मन और इन्द्रियों के संयम से प्राणों का संयम है। यहाँ प्राणों के रुकने का कोई निर्दिष्ट स्थान नहीं है, जहाँ कहीं भी रुक सकते हैं, तथा काल और संख्या का भी कोई विधान नहीं है।


प्राणायाम का फल ---- उस प्राणायाम के सिद्ध होने पर विवेक- ज्ञान को आवृत्त करने वाले पाप और अज्ञान का क्षय हो जाता है--- ततक्षीयते प्रकाश आवरणं "। " धारणासु  योग्यता मनस: " अर्थात प्राणायाम की सिद्धि से मन स्थिर होकर ; मन की धारणाओं के योग्य सामर्थ्य हो जाती है।&&&&&&&&&&&&&&&&



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