सोमवार, 7 अक्तूबर 2013

बुत बनना ही एक बुद्ध बनने की प्रक्रिया

 व्याकुल 



आज मेरा मन बहुत कुछ कहने को व्याकुल हो रहा है। यदि मन व्याकुल होता है , तो वह निश्चित रूप से शरीर पर भी प्रभाव डालता है। शरीर में अवसाद , थकावट - सी छाई रहती है। शरीर में चैतन्यता के लिए शरीर को साधना आवश्यक है। इसके लिए हमें शरीर को स्थिर करना होगा। शरीर को स्थिर करने के लिए सहज आसन में बैठना होगा । सहज आसन से तात्पर्य सुख पूर्वक आसन में बैठना है। जिस भी आसन में बैठें उसी आसन में स्थिरता पूर्वक ही बैठें। 



एक रूप से बुत -सा बन जाएँ ;बिलकुल भी हिलें -डुलें नहीं। बुत बनना ही एक बुद्ध बनने की प्रक्रिया का एक अंग है ; बुद्ध अर्थात सजग होना है। सजगता आँख बंद कर स्वयं को अपने अंदर झाँकने में हैं ; जैसे-जैसे व्यक्ति अंदर झांकता है ; वैसे -वैसे स्थिरता आने लगती है। शरीर स्थिर होने लहता है तथा मन नें अनेक विचार दौढ़ने लगते हैं। उन विचारों को बांधने के लिए मन को साँस पर स्थिर रखना होता है। सांसों को समता भाव से देखना होता है। सांसो की गति सम होती है। शरीर सम होता है। तथा मन भी स्थिर हो जाता है। परिणामत: व्याकुलता दूर हो जाती है।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&


प्रथम ब्लॉग १५ मई २०१० 

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