बुधवार, 9 अक्तूबर 2013

वनस्पति की शांति की प्रार्थना

वनस्पति वृक्ष ,पेढ़,पोधे ,घास ,साग- पात,पत्र-पुष्प आदि के रूप में 


वनस्पति की शांति की प्रार्थना शांति -पाठ में की गयी है । वस्तुत :वनस्पति क्या है ? वनस्पति एवं ओषधि क्या अंतर है ?ओषध फल आने पर समूल रूप में नष्ट हो जाती है ,जबकि वनस्पति वृक्ष ,पेढ़,पोधे ,घास ,साग- पात,पत्र-पुष्प आदि के रूप में होती है ।




 बिना पुष्प के फल भी आते हैं । यह सूर्य -तापी है । इसके फल शरीर को पुष्ट करने वाले होते हैं । आम ,अमरूद , संतरा ,अनार ,अनानास आदि इसी प्रकार की वनस्पतियाँ हैं । इनमें शरीर के लिए ऊर्जा होती है । वस्तुत: वानस्पतिक एवंओषधेय आहार का ही सेवन करना चाहिए ।


 यह आहार ही शरीर को पुष्ट जहाँ करता है ,वहां रोग-रहित भी बनाता है ,तथा वह सन्मार्ग की ओर भी प्रेरित करता है । एक प्रसिद्ध कहावत है कि जैसा व्यक्ति अन्न खाता है ,वैसा ही उसका मन बनता है ।


परिणामत: मन का निर्माण अन्न के द्वारा ही होता है। प्राय: अन्न चन्द्र -तापी होता है । ज्योतिष के अनुसार भी मन एवं चन्द्र का सार्थक तथा गहन सम्बन्ध है । इस प्रकार का आहार ही सात्विक होता है ;यह ही मन, चित्त,बुद्धि आदि को निर्मल रखता है एवं अहंकार का उपशमन करता है। सात्विक आहार ही सत विचार को प्रसूत करता है।&&&&&&&&&&&&&&&&&&&


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