शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

धारणा के लिए किसी एक विषय पर मन को एकाग्र करना

एकाग्रता को ही धारणा भी कहा जा सकता है। 


धारणा से तात्पर्य है--- " देशबंध :चित्तस्य धारणा " अर्थात जिसका ध्यान किया जाता है , उसी में चित्त को एकाग्र करके बांधना ही धारणा है। अर्थात स्थूल- सूक्ष्म या बाह्य- आभ्यंतर , किसी एक ध्येय स्थान में चित्त को बाँध लेना , स्थिर कर देना अर्थात लगा देना ' धारणा ' कहलाता है। साधक को धारणा के लिए किसी एक विषय पर मन को एकाग्र करना होता है। परा - मनोवैज्ञानिकों ने मन को व्यापक माना है, उसमें में अनंत- अनंत तरंगे पैदा होती रहती हैं , न जाने कैसी - कैसी मनोवृत्तियां पैदा होती हैं। जितने विचार और मनोवृत्तियां पैदा होंगी, मनुष्य उतना ही उनके प्रवाह में बहता चलता है। मनुष्य की दशा ठीक वैसी हो जाती है , जैसे वेगवती नदी हो , उसमें पानी के भंवर हों , उनमें कोई चींटा गिर जाए , वह व्याकुल और जीवन से निराश हो जाता है। ऐसी दशा में क्या मनुष्य का मन एकाग्र और स्थिर रह सहता है ? वह दुःख , पीड़ा और संताप का अनुभव करता रहता है। सामान्यत: मनुष्य की यही दशा होती है। दुःख और संताप में आत्मा खो जाता है। उसे इस बात की अनुभूति ही नहीं हो पाती कि मैं कौन हूँ , कहाँ से आया हूँ और कहाँ जाना है ? उस का मन अनेक वस्तुओं के साथ जुड़ा रहता है। स्वयं को पहचानने का न समय है न अन्तराल है , बस विषयों का ध्यान होता रहता है। व्यक्ति दुखी और अशांत इसलिए होता है कि वह स्वयं को भूल जाता है। मन में जो बहुत-सी वस्तुएं समाई हुयीं हैं , उन्हें चुन- चुन कर निकाल दो। हमारा मन इतना सध जाए कि सिवाए आत्मा के उसे और कुछ दिखाई ही न दे



धारणा किसी की भी वस्तु की हो सकती है। उसके मन में ऐसी योग्यता पैदा हो जाती है कि वह कहीं भी टिक सकता है -- " धारणासु योग्यता मनस:"। हमारी धारणा का जो भी विषय हो , पूरा का पूरा मन वहां केन्द्रित हो जाता है। तीन वस्तुएं होती हैं -- द्रष्टा , दृश्य और दर्शन। उदाहरण के लिए हम किसी व्यक्ति को देख रहें हैं , हम द्रष्टा हैं। जिसको देख रहे हैं वह दृश्य है, तथा तीसरी वस्तु दर्शन है। जैसे आप मुझे देखते हुवे भी यह अनुभव करें कि मैं देख रहा हूँ । बहुत सूक्ष्म दृष्टि से स्वयं का अनुभव करना। पूरा का पूरा मन वहां केन्द्रित हो जाए , आस- पास कोई दूसरी वस्तु दिखाई ही न दे , बस यही धारणा है। टांगा हांकने वाले घोड़े की आँखों के दोनों ओर पतली-सी पट्टियाँ बाँध देते हैं , घोड़े को केवल रास्ता दिखाई देता है। सड़क पर चलते दायें- बाएं मनुष्य दिखाई नहीं देते। वैसे ही हमारा मन धारणा से एकाग्र हो जाए तो आस- पास का संसार दिखाई नहीं देगा। एक मात्र आत्मा ही दिखाई देगा। मन की एकाग्रता हमारे सामने आत्मा को प्रकाशित कर देगी। एकाग्रता से मन में विशेष शक्ति उत्पन्न हो जाती है ओर मन निर्मल हो जाता है। एकाग्रता को ही धारणा भी कहा जा सकता है।********************************************************************



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