शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

गिरे हुवे व्यक्ति को फिर परमात्मा भी नहीं उठा सकता

अहं भाव के विनाश से ही सशक्त मनोबल का सृजन होता है 


जब मानव-विचार एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क तक भेजे जाते हैं तो उसे ' टेलीपैथी ' कहते हैं। जीवन की अनंत शक्तियों पर पूर्ण विश्वास करने वाला सफल मनोचिकित्सक इस विधि द्वारा रोगी पर अपने विचार आरोपित करता है। यदि दोनों के विचारों का तारतम्य ठीक बैठ जाता है , जिनमें मनोचिकित्सक का विश्वास होता है। ऐसी स्थिति में रोगी चेतन अथवा अचेतन मन से उन्हीं अनंत शक्तियों पर अपना विश्वास जमाकर लाभान्वित होता है। कायाकलेवर , जिससे आचरण और क्रियाएँ प्रतिपादित होती हैं , विचारों द्वारा ही संचालित होता है। जो व्यक्ति रचनात्मक विचारणाओं को जिस अनुपात में अपनाता , संजोता और सक्रिय करता चलता है, उतना ही वह सदाचारी , पुरुषार्थी और परमार्थी बनता जाता है। इसी आधार पर सुख-शांति के अक्षुण्ण बने रहने का आधार खड़ा होता है।

शुभ और दृढ़ विचार मन में धारण करने और उत्कृष्ट चिन्तन-मनन करते रहने से सात्विक भावों की अभिवृद्धि होती है, आचरण उदात्त और उन्नत बनता है, मानसिक शक्ति का विकास होता है और सदगुणों की प्राप्ति होती है। सामान्यतया विचारशक्ति बिखर कर नष्ट होती रहती है। उसे केन्द्रित करने एवं मानसिक शक्ति-सम्पन्न बनने के लिए हमें उत्कृष्ट विचारों की सम्पदा बढ़ाने के साथ ही अपने ' स्व ' का विकास करना होगा। हमारा स्व जितना व्यापक होगा , हमारी शक्ति उतनी ही बढ़ती चली जाएगी। यदि स्वार्थ के साथ लोकोपकार का समावेश हो जाए तो यह शक्ति अपरिमितता की ओर अग्रसर होने लगेगी। अहं भाव के विनाश से ही सशक्त मनोबल का सृजन होता है। प्रत्येक विचार आत्मा ओर बुद्धि के संसर्ग से पैदा होता है। बुद्धि उसका आकार-प्रकार निर्धारित करती है तो आत्मा उसमें चेतना फूँकती है। इस तरह विचार अपने आप में एक सजीव ओर सूक्ष्म तत्त्व है। मनुष्य के विचार एक तरह की सजीव तरंगें हैं ; जो जीवन , संसार और यहाँ के पदार्थों को प्रेरणा देती रहती है।

विचारों का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपने सुख-दुःख , हानि-लाभ , उन्नति-अवनति, सफलता-असफलता सभी कुछ हमारे अपने विचारों पर निर्भर करते हैं। जैसे विचार होते हैं वैसा ही हमारा जीवन बनता है। संसार कल्प-वृक्ष है, इसकी छाया तले बैठ कर हम जो विचार करेंगे , वैसे ही परिणाम प्राप्त होंगे। जो अपने आप को सद्विचारों से भरे रखते हैं , वे पग-पग पर जीवन के महान वरदानों से विभूषित होते हैं। सफलता, महानता, सुख-शांति प्रसन्नता के उपहार उन्हें मिलते रहते हैं। इसके विपरीत जो अपने आप को हीन,अभागा समझते हैं, उनका जीवन भी दीन-हीन बन जाता है। विचारों से गिरे हुवे व्यक्ति को फिर परमात्मा भी नहीं उठा सकता जो अंधकारमय , निराशावादी विचार रखते हैं , उनका जीवन कभी उन्नत और उत्कृष्ट नहीं बन सकता। मनुष्य को वैसा ही मिलता है जैसे उसके विचार होते हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि विचारों को निम्न भूमि से हटाकर उन्हें ऊर्ध्वगामी भय जाए, जिससे मनुष्य की उन्नति और उसका कल्याण हो सके। दीन-हीन क्लेश पर दुखों से भरे हुवे नारकीय जीवन से छुटकारा पाकर मनुष्य इस धरती पर स्वर्गीय जीवन की उपलब्धि कर सके। विचारों में विमलता , उत्कृष्टता आने पर प्रसन्नता एवं संतोष मिल जाते हैंविचारों की विमलता से समस्त दुःख-द्वन्द्वों का नाश हो जाता है। हम गीली मिटटी के नष्ट हो जाने वाले पुतले नहीं हैं; रक्त के थैले नहीं हैं; निर्जीव शव नहीं हैं, मात्र देह नहीं हैं, आकार-प्रकार बाह्य चमक-दमक नहीं हैं हम तो अमर आत्मा हैं , शक्ति महासागर हैं।हम स्वतंत्र हैं , सत्य हैं, शिवकल्याण हैं। हम आनंदमय , निर्दोष, स्वच्छ और पवित्र हैं। यदि एक व्यक्ति सुखी एवं समृद्ध है तो उसका प्रधान कारण यही है कि वह सदा-सर्वदा शुभ भावना में निवास करता है। यदि कोई व्यक्ति दुखी है तो इसका विशिष्ट कारण यह है कि वह मन की क्रिया को चिंता , संदेह एवं कुत्सित चिन्तन में ही समाप्त कर देता है।&&&&&&&&&&&&&&



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