शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

आत्मा को नया शरीर ग्रहण करना ही होता है

 आत्मा नित्य है और शरीर ही बदलता है। शरीर का अंतिम परिवर्तन है मृत्यु। 



पृथ्वी स्थूल है। यदि हम इसका स्पर्श करें तो इसकी कठोरता का अनुभव कर सकते हैं। किन्तु जैसे ही पृथ्वी सूक्ष्म होने लगती है तो वह जल बन जाती है। अत: उसका स्पर्श मृदु हो जाता है। आगे जल से आग और अधिक सूक्ष्म हो जाती है। आग या बिजली के बाद हवा बनने पर वह और अधिक सूक्ष्म हो जाती है। हवा के बाद आकाश के रूप में और अधिक सूक्ष्मतर होती चली जाती है। आकाश के बाद मन और अधिक सूक्ष्म है और मन के बाद बुद्धि उससे अधिक सूक्ष्म है। इन तत्त्वों की सहायता से मनुष्य ने कितने ही प्रकार के विज्ञानों का अविष्कार किया है। अनेक वैज्ञानिक हैं। जैसे भूमि - विशेषज्ञ मिट्टी का विभिन्न रूपों में विश्लेषण करते हैं। वे इसके माध्यम से बता देते हैं इसमें कौन- कौन से खनिज पदार्थ हैं। यह स्थूल पदार्थ पृथ्वी का ज्ञान है। कोई चांदी, कोई सोना, कोई पीतल, लोहा , तांबा आदि विभिन्न खनिज खोज निकालते हैं। यदि व्यक्ति और अधिक सूक्ष्म तत्त्वों का अध्ययन करे तो वह पानी , पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल आदि का अन्वेषण करता है। और अधिक सूक्ष्मतर स्थिति के लिए आग और बिजली का अध्ययन किया जाता है। सूक्ष्म आग से आगे हवा और आकाश का अध्ययन किया जाता है। हमने विमान के क्षेत्र में बहुत उन्नति कर ली है। हम इस बात का अध्ययन करते हैं कि विमान कैसे चलायें जाएँ ?

इसके बाद इलैक्ट्र्रोनिक्स जैसे वायवीय तत्त्वों का क्रम शुरू होता है। इसमें एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ में वायवीय रूपांतरण होता है। इसके बाद और अधिक सूक्ष्म तत्त्व मन का अध्ययन होता है, जिसके अंतर्गत मनोविज्ञान और मनोविश्लेषण का अध्ययन किया जाता है। बुद्धि और तर्कवाद के लिए केवल दार्शनिक मीमांसा ही सम्भव है। किन्तु आत्मा के विषय में क्या हुवा ? क्या आत्मा कोई विज्ञान है ? भौतिकवादियों के लिए नहीं है। भौतिक विज्ञान आकाश , मन और बुद्धि के अध्ययन तक ही पहुँच पाया है। उसके बाद के तत्त्वों का अध्ययन वह नहीं कर सका है। बुद्धि के बाद कौन सा तत्त्व है , उसका अभी उन्हें ज्ञान नहीं हो सका है।

गीता का आरम्भ बुद्धि के बाद के तत्त्व के अध्ययन से ही होता है। प्रारंभ में ही अर्जुन दुविधा में पड़ जाता है। उसकी बुद्धि भ्रमित हो जाती है कि वह युद्ध करे या न करे। श्रीकृष्ण गीता का आरम्भ वहीँ से करते हैं जहाँ बुद्धि विफल हो जाती है। आत्म - ज्ञान का प्रारंभ कैसे होता है ? यह बच्चे के खेल की तरह ही सरल है। हम समझ सकते हैं कि यद्यपि बच्चे का शरीर अभी छोटा है, किन्तु एक दिन वही शरीर आपकी या मेरी तरह बड़ा हो जाएगा। किन्तु आत्मा वही रहेगी। इसलिए बुद्धि से हम यह समझ सकते हैं कि यद्यपि शरीर बदल गया हैफिर भी आत्मा उपस्थित है। वही आत्मा जो कभी बच्चे के शरीर में थी, वह अब वृद्ध के शरीर में भी विद्यमान है। अत: आत्मा नित्य है और शरीर ही बदलता है। शरीर का अंतिम परिवर्तन है मृत्यु। हर क्षण , हर दिन, हर घंटे शरीर बदल रहा है। किन्तु अंतिम परिवर्तन के समय जब शरीर कार्य करने में असमर्थ हो जाता है तो आत्मा को नया शरीर ग्रहण करना ही होता है। जिस प्रकार हमारे वस्त्र बहुत जीर्ण हो गये हों तो उन्हें हम पहन नहीं सकते। हमें नये वस्त्र धारण करने ही पड़ते हैं। यही स्थिति आत्मा की है। जब शरीर बहुत जीर्ण हो जाता है तो हमें दूसरा शरीर ग्रहण करना ही पड़ता है , इसे ही मृत्यु कहते हैं।

अब हमें सूक्ष्मतम भौतिक तत्त्व अहंकार के विषय में जानना चाहिए। अहंकार क्या है ? व्यक्ति शुद्ध आत्मा है , परन्तु अपनी बुद्धि और मन की सहायता से वह पदार्थ के सम्पर्क में आता है। व्यक्ति ने पदार्थ को अपना स्वरूप मान लिया है। यही मिथ्या अहंकार है। वैसे व्यक्ति शुद्ध आत्मा है, पर वह अपने मिथ्या स्वरूप को स्वीकार करता है। उदाहरणार्थ व्यक्ति भूमि या विशेष देश-प्रदेश को अपनी पहचान मान कर अपने को भारतीय या किसी विशेष प्रदेश -स्थान का अपने को मानने लगता है। इसी को अहंकार कहते हैं। अहंकार का अर्थ है वह शुद्ध स्थल जहाँ शुद्ध आत्मा पदार्थ के सम्पर्क में आती है। यह सम्पर्क ही अहंकार है। अहंकार बुद्धि से भी अधिक सूक्ष्म है।

गीता में कहा गया है कि आठ भौतिक तत्त्व हैं--- पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार। अहंकार का अर्थ है, मिथ्या स्वरूप , जो यह सोचते हुवे शुरू होता है कि वह पदार्थ है , जबकि वह प्रतिदिन प्रतिक्षण देखता है कि वह पदार्थ नहीं है। यह मिथ्या धारणा या भ्रान्ति ही अहंकार है। हमारे लिए मुक्ति का अर्थ है , अहंकार से छुटकारा पाना। ' अहं ब्रह्मास्मि ' अर्थात मैं ब्रह्ममय हूँ और मैं आत्मा हूँ। यही भावना मुक्ति का प्रथम चरण या द्वार है। अहंकार न तो पदार्थ है और न ही आत्मा , अपितु यह दोनों का संधि-स्थल है। इसी स्थल पर आकर आत्मा पदार्थ के सम्पर्क में आती है और अपने आप को भूल जाती है।%%%%%%%%%%%

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