गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

अधिक समय की संगति का ही परिणाम प्रेम

आध्यात्मिक चिन्तन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता 


संसार को जीतने की इच्छा करने वालो मनुष्य को पहले स्वयं अपने को जीतने का प्रयास करना चाहिए। यदि हम ऐसा कर सके तो एक दिन हमारा विश्व-विजेता बनने का स्वप्न अवश्य पूरा होगा। हम अपने जितेन्द्रिय रूप से संसार के सब प्राणियों को अपने संकेत पर चला सकेंगे। संसार में कोई भी जीव हमारा विरोधी नहीं रहेगा। आध्यात्मिक चिन्तन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता और न उसमें अपने आप को सुधारने की क्षमता रह जाती है। वह भूलों पर भूल करता चला जाता है और इस प्रकार अपने जीवन को विकल बना देता है। मनुष्य को मनुष्य बनाने की वास्तविक शक्ति भारतीय संस्कृति में ही है। यह संस्कृति हमें मनुष्य मात्र के लिए प्रेम क्ररना सिखाती है। मनुर्भव का स्वरूप वैदिक आस्था है। यदि प्रत्येक कार्य में हम अंतरात्मा की सम्मति प्राप्त कर लेंगे तो विवेक-पथ नष्ट नहीं होगा। विश्व भर का विरोध करने पर भी यदि हम अपनी अंतरात्मा का पालन कर सके तो कोई भी हमें सफलता प्राप्त करने से नहीं रोक सकता


जब तक हम में अहंकार की भावना रहेगी तब तक त्याग की भावना का उदय होना कठिन है। अपनी शक्ति भर कार्य करते हुवे ही आत्म- समर्पण करना चाहिए। किसी भी घटना पर हतोत्साहित न हों। हमारा अपने ही कर्मों पर अधिकार है, दूसरों के करणों पर नहीं। आलोचना न करो , आशा न करो , भय न करो , सब अच्छा ही होगा। अनुभव आता है और जाता है। खिन्न या दुखी नहीं होना चाहिए। दूसरों का विश्वास हमें अधिकाधिक असहाय और दुखी बनाएगा, मार्गदर्शन के लिए अपनी ओर अर्थात आत्म-विश्वास को ही अपनाना चाहिए। हमारी सत्यता हमें दृढ़ बनाएगी ओर यह दृढ़ता ही लक्ष्य तक ले जाएगी। किसी बात के लिए भी अपने को क्षुब्ध न करो। मनुष्य में नहीं ईश्वर में विश्वास करो। वही हमें सन्मार्ग दिखा सकता है।


महान व्यक्ति सदैव अकेले चले हैं और इस अकेलेपन के कारण दूर तक चलें हैं। अकेले व्यक्तियों ने अपने ही सहारे संसार के महानतम कार्य सम्पन्न किए हैं। उन्हें एकमात्र अपनी ही प्रेरणा प्राप्त हुयी है। वे अपने ही आंतरिक सुख से सदैव प्रफुल्लित रहे हैं। दूसरों से दुःख मिटाने की उन्होंने कभी आशा नहीं रखी। निज वृत्तियों में ही उन्होंने सहारा देखा है। अकेलापन जीवन का परम सत्य है। किन्तु अकेलेपन से घबराना तथा कर्त्तव्य-पथ से हतोत्साहित होना या निराश होना सबसे बड़ा पाप है। अकेलापन हमारे निजी आंतरिक प्रदेश में छिपी हुयी महान शक्तियों को विकसित करने का श्रेष्ठ साधन है। अपने ऊपर आश्रित होने पर हम अपनी उच्चतम शक्तियों को खोज निकाल सकते हैं। दूसरों को अपने जीवन का संचालक बना देना ऐसा ही है जैसा अपनी नौका को ऐसे प्रवाह में डाल देना जिसके अंत का हमें ज्ञान नहीं ।


प्रेम ही एक ऐसी महान शक्ति है जो प्रत्येक दिशा में जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक होती है। बिना प्रेम के किसी के विचारों में परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। विचार तर्क-वितर्क की सृष्टि नहीं है। विचारणा तथा विश्वास बहुत काल के सत्संग से बनते हैं। अधिक समय की संगति का ही परिणाम प्रेम है। इसलिए विचार धारणा अथवा विश्वास प्रेम का विषय है। यदि हम दूसरों पर विजय प्राप्त करके उनको अपनी विचारधारा में बहाना चाहते हैं , उनके दृष्टि -कोण को बदल कर अपनी बात मनवाना चाहते हैं, तो प्रेम का ही सहारा लेना चाहिए। प्रेम के द्वारा ही सच्ची विजय प्राप्त की जा सकती है।&&&&&&&&&&&&&&&

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