शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

ईश्वर- प्रणिधान

ईश्वर- प्रणिधान का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पण 




ईश्वर- प्रणिधान का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पण। जब आपने स्वयं का या शरीर में स्थित आत्मा का पूर्ण रूप से अध्ययन कर लिया , तभी आप समर्पण कर सकते हैं। एक रूप से स्वयं को ही समर्पित करना है। यदि आप स्वयं को ठीक से नहीं समझेंगे , तो समर्पित कैसे करेंगे और किसको करेंगे। अत: ईश्वर का होना आवश्यक है। ईश्वर अंतिम साध्य है। यह बुद्धि का एक ऐसा केंद्र - बिंदु है , जिसके सामने आप नत- मस्तक हो सकते हैं। ईश्वर हो तो समर्पण सरल हो सकता है। पहले स्वयं को देखिए, फिर मन- रूपी दर्पण पर कितनी धूल है , उसे पोंछिए। इसके बाद परमात्मा के मंदिर में प्रवेश कीजिये। स्वयं को समर्पित कर अहंकार का विसर्जन कीजिये। परम पवित्र होकर संतोष प्राप्त कीजिये। इन सभी नियमों का पालन करके ही ईश्वर के प्रति समर्पित हुवा जा सकता है। यह समर्पण ही तभी जीवन के विकास में सहायक हो सकता है।


प्रणिधान नाम भक्ति का है। ईश्वर की भक्ति करनी आवश्यक है। महर्षि पतंजलि ने योग - दर्शन में ईश्वर को स्वीकार किया है। सांख्य - शास्त्र के प्रणेता कपिल ईश्वर को नहीं मानते। न मानने का अर्थ यह नहीं कि वे नास्तिक हैं, उनका कहना है कि हमने जिन तत्त्वों को स्वीकार किया है, कोई व्यक्ति यदि उनका विचार कर ले तो उसका कैवल्य हो जाता है। पतंजलि का कहना है कि कोई व्यक्ति यदि ईश्वर की ओर उन्मुख हो जाये तो उसका कैवल्य हो जाता है। अन्दर से सांख्य ईश्वर को मानते हैं। सांख्य २४ तत्त्व जड़ ओर चेतन आत्मा को मिला कर २५ तत्त्व मानते हैं। योग के अनुयायी ईश्वर को मिला कर २६ तत्त्व मानते हैं। आत्म- विज्ञानं की प्रक्रिया दोनों की समान है। इसलिए योग ओर सांख्य की आत्मा ओर ईश्वर का ज्ञान कराने में एक जैसी मान्यता है। साथ ही योग का कहना है कि हमने जिस ईश्वर को माना है , उसकी कोई भक्ति कर ले तो उसका कैवल्य सरलता से हो जाता है। अत: सांख्य - योग एक हैं --- एकं सांख्यं  योगं  वश्यति  पश्यति "

सर्वज्य और जगत के कर्त्ता ईश्वर का अस्तित्व निश्चित रूप से सिद्ध है। इस सूत्र में महर्षि कपिल ने ईश्वर को सृष्टि का उत्पत्तिकर्त्ता , जगत का उपादान कारण या निमित्त कारण न मान कर ; प्रकृति को गति और प्रकाश देने वाला , समस्त विश्व का नियंता एवं आधार के रूप में ईश्वर को माना है। इस प्रकार सांख्य और योग के ईश्वर में कोई विरोध एवं अंतर नहीं है।&&&&&&&&&&&&&&&&&&

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