मंगलवार, 20 अगस्त 2013

सहनशीलता

सहनशीलता 
                         
                                                   
                                         


एक युवती नव-वधू बनकर ससुराल में आई।  सास उसको ऐसी मिली ; जो मानो दुर्वासा का अवतार हो।  वह दिन में दो-तीन बार जब तक बहू से लड़ न लेती , उसे भोजन हजम नहीं होता।  सास बहू को 
बात-बात पर ताने देने लगी , तुम्हारे बाप ने तुम्हें क्या सिखाया है ? तुम्हारी माँ ने क्या यही शिक्षा दी है ? तेरी जैसी मूर्ख तो मैंने मैंने कभी देखी नहीं।  बहू यह सब कुछ सुनती और सुनकर मोन रहती। 
सास चिल्लाकर कहती _ अरी ! तेरे मुख में जीभ नहीं है ? बहू फिर भी शांत बनी रहती।  

       एक दिन जब वह इसी प्रकार बहू पर बरस रही थी तभी एक पड़ोसन ने कहा _बुढ़िया ! लड़ने की बहुत इच्छा , तो आकर हमसे लड़।  इस गाय के पीछे क्यों पड़ी रहती है ? बहू ने तुरंत उठकर कहा _
' नहीं , इन्हें कुछ भी मत कहिये।  ये मेरी माँ हैं माँ।  माँ ही बेटी को  नहीं समझायेंगी तो फिर कौन समझाएगा  ? 

सास ने यह बात सुनी तो लज्जित हो गयी फिर कभी उसने क्रोध नहीं किया। बहू की सहनशक्ति ने सास  का स्वभाव बदल दिया।  *****

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