मंगलवार, 13 अगस्त 2013

पहचान__ आचरण

पहचान __ आचरण 

पहचान पाने की व्याकुलता प्राय: सभी में होती है ; हर कोई इसके लिए अपने-अपने ढ़ंग से प्रयास करता है।  कोई धन पाने के लिए ,कोई उच्च पद पाने के लिए , कोई सम्मान के लिए सदा प्रयास करता रहता है।  कुल मिलाकर जितने लोग उतने प्रयास ; इन सभी प्रयासों का उद्देश्य एक ही होता है की समाज में उनकी पहचान और प्रतिष्ठा।  

इन सभी प्रयासों में लगे व्यक्ति यह भूल जाते हैं कि उनके पास क्या है ? इससे भी अधिक कि वे स्वयं क्या हैं ?इससे ही उनकी सही पहचान होती है।  यथार्थ में यही सच्ची सम्पदा है और यही वास्तविक पहचान है।  जो यह सम्भाल लेता है , वह सब कुछ सम्भाल लेता है।  

इस सम्बन्ध में एक कथा कबीर के सन्दर्भ में आती है।  वे अपने बेटे कमाल को पहचान का सही पाठ पढ़ाने के लिए मार्ग के बीच में खड़े थे।  उस समय वहाँ से बांदोगढ़ के राजा की सवारी निकलने वाली थी।  मार्ग को निर्विघ्न करने करने के लिए कुछ सैनिक वहाँ आये। उन्होंने कबीर को धक्का दिया और बोले _ ' बूढ़े ! तुझे समझ में नहीं आता कि महाराज की सवारी निकल रही है।  ' इस पर कबीर हँसे और बोले _ ' इसी कारण यह  ऐसा है। ' बाद में सनिकों का अधिकारी आया और बोला _ ' मार्ग से हट जाओ , महाराज की सवारी आने वाली है। ' कबीर फिर हँस कर बोले _ ' इसी कारण यह  ऐसा है। ' 

इसके बाद राजा के मंत्री आये , उन्होंने उससे कुछ नहीं कहा और उन्हें बचाकर अपने घोड़ों को ले गये।  इस पर कबीर फिर हँसते हुवे बोले _ ' इसी कारण यह  ऐसा है। ' और तब महाराज स्वयं आये , उन्होंने सवारी से उतरकर महात्मा कबीर के पैर पाँव छुये , फिर चले गये।  इस पर कबीर ठहाका मारकर हँसे और बोले _ इसी कारण यह ऐसा है। 

अब कमाल से नहीं रहा गया उसने उनसे ' इसी कारण ' की वजह  पूछी।  इस पर कबीर ने कहा _ ' मनुष्य के व्यक्तित्व और आचरण से उसकी पहचान प्रकट होती है।  मनुष्यों में भेद भी इसी कारण होता है।  जो अपने व्यक्तित्व व आचरण की निरंतर समीक्षा करते हुवे इसे विकसित करते हैं , वे अपनी पहचान को भी स्वत: विकसित  कर लेते हैं। 

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