सोमवार, 19 अगस्त 2013

भोजन और भाव

भोजन और भाव 

                                             
                          
जब कोई मनुष्य किसी खाने की वस्तु को श्रद्धा , भक्ति और एकाग्रता से बनाकर खिलाता है तो वह 

पदार्थ बहुत हल्का बन जाता है और वह सुपाच्य हो जाता है।  पेट में और प्राण में भारीपन नहीं होता। 
हल्केपन से सात्विकता उत्पन्न होती है।  


                                जब कोई अनमने मन  , चंचल भाव और सेवा धर्म न समझकर बनाकर खिलाता है  तो वह पदार्थ पेट को भारी बना देता है और प्राण स्थूल होकर कुपाच्य बना देते हैं।  *****

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