भोजन और भाव
जब कोई मनुष्य किसी खाने की वस्तु को श्रद्धा , भक्ति और एकाग्रता से बनाकर खिलाता है तो वह
पदार्थ बहुत हल्का बन जाता है और वह सुपाच्य हो जाता है। पेट में और प्राण में भारीपन नहीं होता।
हल्केपन से सात्विकता उत्पन्न होती है।
जब कोई अनमने मन , चंचल भाव और सेवा धर्म न समझकर बनाकर खिलाता है तो वह पदार्थ पेट को भारी बना देता है और प्राण स्थूल होकर कुपाच्य बना देते हैं। *****
जब कोई मनुष्य किसी खाने की वस्तु को श्रद्धा , भक्ति और एकाग्रता से बनाकर खिलाता है तो वह
पदार्थ बहुत हल्का बन जाता है और वह सुपाच्य हो जाता है। पेट में और प्राण में भारीपन नहीं होता।
हल्केपन से सात्विकता उत्पन्न होती है।
जब कोई अनमने मन , चंचल भाव और सेवा धर्म न समझकर बनाकर खिलाता है तो वह पदार्थ पेट को भारी बना देता है और प्राण स्थूल होकर कुपाच्य बना देते हैं। *****
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