सोमवार, 12 अगस्त 2013

संतुष्टि ही ख़ुशी

एक संत भ्रमण पर नकले हुवे थे।  उन्हें मार्ग में एक राजा मिला ; जो पड़ोसी राज्य पर हमला करने के लिए निकला हुवा था।  संत को देख कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बोला _ ' महाराज ! मैं चक्रवर्ती सम्राट हूँ।  मेरे पास अपार धन-दौलत है और आज मैं उसे और बढ़ाने के लिए दूसरे राज्य पर आक्रमण करने निकला हूँ।  आप मुझे आशीर्वाद दें। ' संत धीरे से हँसे और उसके हाथ पर एक रूपये का सिक्का रख दिया। 

राजा को आश्चर्य हुवा और वह बोला _ ' ' महाराज! आपने सुना नहीं कि मैं बड़ा धनवान हूँ , मुझे इस एक रूपये की आवश्यकता नहीं है। ' संत बोले  _ बेटा ! यही सुनकर मैंने यह रुपया तुझे दिया।  मुझे यह मुद्रा पड़ी मिली थी और मैंने सोचा कि इसे सबसे दरिद्र व्यक्ति को दूंगा।  आज तुझसे मिलकर मुझे लगा कि सबसे दरिद्र यदि कोई है ; वो तू ही है , जो अपार धन-सम्पदा होते हुवे भी दूसरों का घर लूटने चला है। ' 

संत की बात सुनकर ही राजा का सिर शर्म से झुक गया और उसने जीवन की राह बदलने का संकल्प किया। 

जीवन में सबसे बड़ा धन संतोष ही है ; जिसके पास संतोष है ; फिर उसे अन्य आकर्षण विचलित नही करते। ***

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