इस युग का सबसे बड़ा संकट प्रत्यक्षवाद और परिणामों की त्वरित आकांक्षा ही है। कार्य करने से पूर्व ही मनुष्य लाभ की सोचता है और उसे पाने के लिए किसी भी सीमा तक उतरने के लिए तत्पर है।
आदर्शों और मूल्यों का स्थान चालबाजी और कुचक्र ने ले लिया है और अधिक से अधिक मनुष्य इस अनैतिकता को ही जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य मानने लगते हैं।
सेवा-निवृत्त प्राचार्य एस.डी.पी.जी.कालेज। एम.ए.,पी-एच.डी.,डी.लिट.उपाधि प्राप्त। ' आचार्य शंकर पुरस्कार' ॐ एवं प्रणव पर शोध-ग्रन्थ लिखने पर १९९६ में ३१ हजार तथा आदिशंकराचार्य का स्वर्ण-अंकित पदक प्राप्त। मेरे पिता डा.गंगाराम गर्ग गु.का.वि.वि., हरिद्वार
के पूर्व कुलपति रहे तथा विश्वविख्यात विश्व-कोशों के रचयिता।धर्म- पत्नी डा.बीना गर्ग ,डी.लिट.अध्यक्ष,हिंदी-विभाग वी.एम्.एल.पी.जी.कालेज। आर्यसमाज का संरक्षक तथा अखिल भारतीय योग संस्थान का संस्थापक सदस्य।आई.आई.टी.दिल्ली से कम्प्यूटर में A.C.C.L.(92)।
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