रविवार, 11 अगस्त 2013

इस युग का सबसे बड़ा संकट प्रत्यक्षवाद और परिणामों की त्वरित आकांक्षा ही है।  कार्य करने से पूर्व ही मनुष्य लाभ की सोचता है और उसे पाने के लिए किसी भी सीमा तक उतरने के लिए तत्पर है।  
आदर्शों और मूल्यों का स्थान चालबाजी और कुचक्र ने ले लिया है और अधिक से अधिक मनुष्य इस अनैतिकता को ही जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य मानने लगते हैं।  

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