रविवार, 18 अगस्त 2013

स्वामी दयानंद और गुरु विरजानंद

स्वामी दयानंद और गुरु विरजानंद 

                                                                



गुरु विरजानंद अपनी कुटिया में बैठे थे।  द्वार खटखटाने की आवाज आई।  गुरु ने पूछा _ ' कौन है 
बाहर ? ' उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला।  दूसरी - तीसरी बार पूछने पर भी जब कोई उत्तर नहीं मिला तो 
विरजानन्दजी सहारा लेकर बाहर निकले।  उन्हें पता चला कि बाहर मूलशंकर खड़े थे।  उन्होंने उनसे पूछा _ ' क्यों रे ! पूछने पर बोल क्यों नहीं कि तू था ? ' मूलशंकर ने उत्तर दिया _ ' जब यह पता 
नहीं कि मैं कौन हूँ तो क्या उत्तर देता ? ' 

गुरु विरजानंद ने प्यार से उसकी पीठ थपथपाई और फिर बोले _ ' आ जा बेटा ! कब से तेरा ही इन्तजार  कर रहा था।  ' दिव्य प्रतिभा सम्पन्न गुरु और प्रखर प्रतिभा सम्पन्न शिष्य का मिलन हुवा  . यही मूलशंकर आगे चलकर स्वामी दयानंद के नाम से प्रख्यात हुवे।  ****** 

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