सोमवार, 12 अगस्त 2013

धर्म और विज्ञान

धर्म कहता है ईश्वर है अपितु इतना ही पर्याप्त नहीं है पर व्यक्ति ईश्वर के सदृश्य बन जाये , यह भी आवश्यक है।  धर्म केवल सूचनाएं ही प्रदान नहीं करता , अपितु इन तथ्यों के साथ -साथ लक्ष्यों और उद्देश्यों की भी उद्घोषणा करता है।  

सत्यत: यही कारण है कि विज्ञान अपनी जड़ता से मुक्त नहीं हो पाया है , जबकि धर्म निरंतर जीवन और जगत में चेतना का संचार करता रहता है।  प्रयोगधर्मिता अपनाई जाएगी।  यदि विज्ञानं अपनी जड़ता से उबर जाये तथा धर्म विज्ञानं की प्रयोग धर्मिता स्वीकार कर ले तो सारी  समस्याएं ही समाप्त हो जायेंगी , तथा भविष्य में ऐसी ही प्रयोगधर्मिता अपनाई जाएगी। 

वस्तुत: मानव के उत्थान का सही रूप तभी स्पष्ट हो पायेगा , जब अध्यात्म और विज्ञान का मिलन हो जायेगा।  

परम पूज्य गुरुदेव के शब्दों में कि विज्ञान जीवित रहेगा , पर उसका नाम भौतिकविज्ञान न होकर अध्यात्म विज्ञान ही हो जायेगा।  इस आधार को अपनाते ही स्वयं सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा।  ***

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